ठंड पर कविता – आज की हालत
पड़ती है जब ठंड ऐसे,
पौष माह चढ़ आता है।
हाथ पैर सब सुन्न हो जाते, देह थरथराता है।
कवि अपने हालत की व्यथा,
देखें कैसे सुनाता है।
हर पंक्ति में वर्णन करके, कैसे वह बतलाता है।
काम धाम कोई न करता,
हाथ बांधे रहता है,
जब तक सूर्य दर्शन न देते,बाहर नहीं निकलता है।
रजाई में दिन रात गुजारे,
वहीं बैठ कर खाता है,
छुप कर बैठे कोने में,10 दिन पर नहाता है।
छिड़क –छिड़क पानी की बूंदे,
चेहरे को चमकाता है,
बड़ी जरूरत आने पर बाहर, मजबूरी में जाता है।
इसी तरह हर दिन काटते,
सूरज को मनाता है,
बहुत हुआ अब ठंड रोक दे,प्रभु से गिड़गिड़ाता है।
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: Anand Kushwaha
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