एक किसान को कोंन नहीं जानता है। सम्पूर्ण राष्ट्र व मानव जगत के लिऐ एक किसान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है जिसे हम भूमिपुत्र भी कहते हैं।
आज हम पढ़ने वाले है, भूमिपुत्र की आत्मकथा (bhumiputra ki atmakatha in Hindi)।
भूमिपुत्र की आत्मकथा हिंदी में
मैं किसान हूं। मुझे कृषक, अन्नदाता व कई दूसरे और नामों से जाना जाता है। मैं इस धरती, जमीन का सेवक हूं और इसी को अपना सबकुछ मानता हूं।
मैं इस प्यारी सी धरती के लिए उसके पुत्र के समान हूं। इसलिए मुझे भूमिपुत्र भी कहां जाता हैं
अपनी पूरी मेहनत के साथ सबसे पहले हल की सहायता से जमीन जोतता हूं। और इस पवित्र माटी को फसल के लिए तैयार करता हूं।
वर्षा ऋतु में बड़े ही लगन के साथ अपनी फसल बोता हूं और फिर सालभर इसकी रक्षा करता हूं। अधिक बारिश की समस्या सूखे से बचाकर जंगली जानवरों से बचाकर इसे तैयार करता हूं।
मैं किसान पुत्र हूं। सालभर मेहनत करने के पश्चात पूरे राष्ट्र के लिए अन्ना का प्रबंध करता हूं। मुझे लगता है मेरा जन्म लोगों की सेवा व पेट भरने के लिए ही हुआ है।
अनेक समस्याओं से जुझकर मैं अपना काम पूरा करता हूं। और कोई मुश्किल आने पर कभी अपने कदम पीछे नहीं हटता हुँ।
खाने में मुझे औरों की तरह फालतू खाने का शौक नहीं है मैं बस घर का बना खाना रोटी, दाल व चावल का सेवन करता हूं। और मुझे ताजा बना स्वादिष्ट खाना पसंद है।
शहरी लोगों की तरह मुझे अधूरे कपड़े पहनने व फालतू के दिखावे का शौक नहीं है। मुझे समझना शहरी लोगों के लिए समझ से परे है।
मुझे अपनी भूमि से बहुत प्यार है दिन में चाहे मुझसे कोई और काम हो या ना हो लेकिन मैं एक बार अपने खेत का रुख अवश्य करता हूं।
मैं अपने खेत को ही अपना सबकुछ मानता हूं। मेरे लिए मेरी जिंदगी मैं सबसे पहले मेरी भूमि है। इसकी सेवा से मैं कभी चुकता नहीं हूं।
गाय, भैंस पालना मेरा शौक है। मैं इनकी देखभाल करता हूं। इनके लिए भोजन उपलब्ध करवाता हूं। और ये मेरी अपने खेत में सहायता करते हैं।
इनका उपयोग में सामान ढोने हल चलाने में तो इनके गोबर से खाद अच्छी फसल के लिए खाद तैयार करता हूं।
प्रारंभिक समय में हमारे पूर्वज लोहे के हत्यारों का उपयोग करके खेती करते थे। फिर धीरे-धीरे लोहे के बने औजार आए और तब से लेकर आज तक हम इनका उपयोग करते आ रहे हैं।
अब धीरे-धीरे हमारा काम और आसान होता जा रहा है। लेकिन जहां हर क्षेत्र डिजिटल होता जा रहा है और हम अभी भी गरीबी में जी रहे हैं।
मुझे अपने आप पर गर्व है कि मुझे इस धरती की सेवा करने का अवसर प्रदान हुआ है। और इस धरती तथा लोगों का पेट भरने में कभी कोई कसर नहीं छोडूंगा।
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आशा करते हैं आपका महत्त्वपूर्ण कार्य इस आत्मकथा की सहायता से संपूर्ण हुआ होगा और आप एक किसान की आत्मकथा को समझे होंगे। यदि आपके साथियों को इसकी आवश्यकता है तो उनके साथ इस भूमिपुत्र की आत्मकथा को अवश्य साझा करें।
और हिंदी अंश को विजिट करते रहें।