वर्तमान में वायु प्रदूषण अत्यधिक तेजी के साथ फैलता जा रहा है। इसका मुख्य कारण है, मनुष्य द्वारा अंधाधुंध प्रकृति का हनन और बढ़ता औद्योगिकरण।
यह प्रदूषण मुख्य रूप से शहरों में अत्यधिक तेजी से फैल रहा है। और यह वहां रहने वाली जनता को भी अत्यधिक प्रभावित कर रहा है। इसका एक उदाहरण हम अपने देश के सबसे बड़े शहर दिल्ली से ही ले सकते हैं।
वायु प्रदूषण के कारण
ऐसे कई कारण है, जिनसे लगातार हवा प्रदूषित होती जा रही हैं। परंतु आज मैं आपको कुछ ऐसे मुख्य कारण बताऊंगा जिनसे की निरंतर वायु दूषित होती जा रही हैं। और जिससे कि भविष्य में हमें काफी खतरा भी है।
वर्तमान में उद्योग क्रांति छाई हुई है। निरंतर औद्योगिकरण हो रहा है। हर प्रकार के कार्य, अनेक प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन बड़े बड़े उद्योगों में होने लगा है। इन उद्योगों से निकलने वाले भारी मात्रा में धुंए को सीधे वातावरण में छोड़ दिया जाता है। किसी का कोई ध्यान नहीं जाता है, कि यह हमारे लिए कितना हानिकारक है। लगातार उद्योगों का निर्माण होता जा रहा है। और वायु प्रदूषण में वृद्धि भी इसी कारण होती जा रही हैं।
पेड़ पौधों की कटाई
अपने आवश्यकता अनुसार पूर्ति के लिए लगातार जंगलों का सफाया किया जा रहा है। जो कि हवा की शुद्धिकरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्या आप जानते हैं? बड़े-बड़े जंगल और पेड़ पोधे ही है, जो कि CO2 (कार्बन डाई ऑक्साइड) को O2 (ऑक्सीजन) में बदलते करते हैं। और हवा को ताजी बनाते हैं।
इंपोर्टेंट फैक्ट
“पूरी दुनिया को आधी से ज्यादा ऑक्सीजन सिर्फ अमेजन के जंगलों से ही उपलब्ध हो जाती हैं।”
बढ़ते वाहन
जब जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। तो सड़कों पर वाहन की कमी कैसे देखी जा सकती है। सड़कों पर तो वाहनों के लिए जगह तक नहीं मिलने लगी है। अब हर व्यक्ति के पास दो पहिया या चार पहिया वाहन अवश्य उपलब्ध है। वाहनों से निकलने वाला धुआं भी पर्यावरण को प्रभावित करता है। और इसका दुष्प्रभाव मुख्य रूप से शहरों में ही देखने को मिलता है।
यह कहना आसान है कि एक वाहन से भला क्या प्रदूषण होगा परंतु कहते हैं, ना “बूंद बूंद से ही घड़ा भरता है” उसी प्रकार सभी वाहन मिलाकर हवा को दूषित करने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।
दिल्ली या बड़े-बड़े शहरों में हवा के प्रदूषित होने का मुख्य कारण यही है। जहां लगातार ऑक्सीजन की कमी होती जा रही हैं। और हानिकारक गैसों का इजाफा हो रहा है।
ईंधन का जलना
कई प्रकार के कार्य ईंधन को जलाकर किए जाते हैं। जैसे बिजली का उत्पादन कुछ घरेलू कार्यों में या बड़े बड़े उद्योगों में। जब ईंधन को जलाया जाता है, तब बड़ी मात्रा में धुंए का उत्पादन होता है। जो कि सीधे पर्यावरण के साथ घुल मिल जाता है।
कचरे को जलाकर
जब किसी स्थान पर मनुष्य रह रहा है, तो उस स्थान पर कचरा न हो ऐसा कैसे हो सकता है? यह भी मुख्य कारण है कि प्रदूषण में लगातार वृद्धि होती जा रही है। कचरे के दुष्प्रभाव भी कई प्रकार के होते है; जैसे ही कहीं आस-पास कचरा इकट्ठा होता है। लोगों द्वारा उसे जला दिया जाता है। इससे सूखा कचरा तो जल्दी जल जाता है, परंतु उसमें उपस्थित गीला कचरा व प्लास्टिक धीरे धीरे जलता रहता है। और भारी मात्रा में धुंए का निर्माण होता है, जो कि CO2 की मात्रा को बढ़ाता है।
आपने कहीं कहीं यह अवश्य देखा होगा कि जब खेतों से फसल को प्राप्त कर लिया जाता है। और उसमें से निकलने वाले अनुपयोगी कचरे को सीधे जला दिया जाता है। इससे भी वायु की शुद्धता कम होती जा रही है
जलता हुआ कचरे का ढेर
वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान
अशुद्ध हवा में सांस लेने से अथवा ऑक्सीजन की कमी के कारण सबसे अत्यधिक मात्रा में सांस की बीमारी होती है
सांस की बीमारी कई प्रकार से होती है-
अशुद्ध हवा में सांस लेने से ब्रोंकाइटिस, सिरदर्द, फेफड़े का कैंसर व ह्रदय रोग जैसी घातक बीमारियां हो सकती हैं।
वायु प्रदूषण मनुष्य के साथ जीव – जंतुओं, जलवायु और ऐतिहासिक स्थलों की इमारतों को भी काफी नुकसान पहुंचा रहा है।
यहां तक की बड़ते प्रदूषण के कारण ही ओजोन परत का छेद बड़ा होता जा रहा है। जिससे की सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणे भी पृथ्वी तक पहुंचने लगी है। तथा इससे तापमान में वृद्धि होती जा रही है।
सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों का सीधा सा असर हमारी आंखों पर पड़ता है। जिससे कि धीरे-धीरे आंखें खराब होने लगती है।
कई प्रकार से तो इंसान लगातार मानसिक रूप से कमजोर होता जा रहा है।
रोकने के उपाय
सबसे पहले व सबसे महत्वपूर्ण तरीका तो यही है कि लोगों को जागरूक होना पड़ेगा, क्योंकि अगर इंसान जागरूक नहीं तो कुछ नहीं। जब लोग जागरूक हो जाएंगे तो खुद ब खुद लोगों को इसके प्रति समझ में आने लगेगा।
मुख्य तरीके
उद्योगों से निकलने वाली चिमनी जिसके माध्यम से धुआं बाहर निकलता है। यह अधिक ऊंचाई में होनी चाहिए। जिससे कि हमारा आसपास का वातावरण स्वच्छ रहें।
उद्योगों को ऐसे स्थानों पर लगाना चाहिए जहां आसपास कोई बस्ती न रहती हो।
पेड़ पौधों की कटाई को रोकना होगा। अगर आवश्यकता अनुसार पेड़ कांटे भी जाए तो लोगों को पेड़ लगाने भी होंगे और इनकी देखभाल भी करनी होगी क्योंकि पेड़ लगाकर छोड़ देने से वे बड़े नहीं हो जाएंगे।
वाहनों में साइलेंसर का उपयोग किया जाना चाहिए। उन्हीं वाहनों का उपयोग किया जाना चाहिए जिनसे की धुंआ बहुत कम मात्रा में निकलता हो।
जहां जिसके मन में आए वहा कचरे को जलाना नहीं चाहिए। कचरे का भी कई प्रकार से प्रबंधन किया जा सकता है।
सरकारी उपाय
वायु प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार द्वारा भी कई कदम उठाए गए हैं। प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम भी बनाया गया है, जो कि सरकार द्वारा 1981 में लागू किया गया था।
इसका मुख्य उद्देश्य प्रदूषण को रोकना, उसे नियंत्रण में करना, जीव जगत के लिए प्रदूषित वायु से रक्षा करना और शुद्ध हवा उपलब्ध करवाना, वायु की गुणवत्ता को एक समान बनाए रखना और इसे अशुद्ध ना होने देना, है।
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