Pustak ki atmakatha (2022)। Pustak ki atmakatha in Hindi। पुस्तक की आत्मकथा इन हिंदी निबंध

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Pustak ki atmakatha in Hindi (2022)

पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध
Pustak ki atmakatha

आज हम लेकर आए हैं एक pustak ki atmakatha essay in Hindi. आखिर कैसे एक किताब हमारा हर वक्त साथ देती है। ओर हमारे साथ रहती हैं। 
आखिर एक पुस्तक अपने जन्म से लेकर कहां कहां तक होकर हमारे पास पहुंचती हैं। ओर हम किस तरह इनका उपयोग करते हैं।
यह निबंध हमने class 1 class 2 class 3 class 4 class 5 class 6 class 7 class 8 class 9 class 10 class 11 व class 12 तथा कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा है।
हमने यहां पुस्तक की आत्मकथा पर 2 छोट व बड़े निबंध उपलब्ध कराएं हैं।

Pustak ki atmakatha (पुस्तक की आत्मकथा) – short essay in hindi

मैं किताब हूं और मुझे पूरा विश्वास है आप मुझे अवश्य जानते होंगे। दरअसल मुझे लोग पुस्तक भी कहते हैं।

मेरा जन्म कागज को एक साथ जोड़ने पर हुआ है और पहले मेरा कोई अस्तित्व नहीं था। मुझे अभी कुछ शतक पहले ही कागज के अविष्कार होने के पश्चात तैयार किया गया है।

मैं अपने अंदर महान लोग, महापुरुष, लेखक, कवि सभी लोगों के विचार समेटे हुये हू। प्रिंटिंग प्रेस में मुझे तैयार करने के पश्चात खरीद बिक्री के लिए मुझे बाजारों में भेज दिया जाता है। बाजार से पाठक मुझे बड़े चाव से खरीदते व पढ़ते हैं। 

मुझे लोगों को शिक्षित बनाने के लिए ही तैयार किया गया है। मुझे लोग पढ़कर अपना मार्गदर्शन करते हैं सही गलत का पता लगा सकते हैं।

मैं अपने अंदर कहानी, कविता, नाटक, शास्त्र, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, राजनीति, अर्थशास्त्र व दुनिया का समान ज्ञान समेटे हुयी हूं। और मुझे अपने आप पर बड़ा गर्व है कि मेरे अलावा अभी तक यह कार्य कोई नहीं कर सकता है।

मुझे पुस्तकालय में संग्रह करके भी रखा जा सकता है। एक बार जो मेरे अंदर लिख दिया जाता है तो उसे फिर दुनिया की कोई ताकत बदल नहीं सकती है।

मैं लोगों को तनाव मुक्त भी करती हूं उन्हें सही मार्ग दिखलाती हूं और उनका मार्गदर्शन करती हूं।

मुझे मेरे पाठक बड़े मान सम्मान के साथ रखते हैं अपने घर में सजा धजाकर रखते हैं।

यहां तक कि लोगों को मैंने मेरी पूजा भी करते हुए भी देखा है, और यह सही भी है क्योंकि आखिर मेरा काम ही कुछ ऐसा है। मुझे पढ़ने वाला ही यह समझ सकता है।

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Pustak ki atmakatha ( पुस्तक की आत्मकथा ) – long essay in Hindi

मैं पुस्तक हूं! क्या आप मुझे जानते हैं क्या आपने कभी मेरा उपयोग किया है। दरअसल मुझे लोग किताब के नाम से भी जानते हैं वैसे तो मुझे सभी अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं।

क्या आप मेरे बारे में सब कुछ जानते हैं चलिए आज मैं आपको अपनी आत्माकथा सुनाती हूं।

मेरा नाम पुस्तक है और लोग मुझे किताब कहकर भी पुकारते हैं। मेरे जन्म के बारे में कहूं तो अभी कुछ शताब्दियों पहले ही हुआ है अर्थात मुझे कुछ सैकड़ों वर्ष पहले ही बनाया गया है।

पहले लोग पांडुलिपि, पत्थरों पर गोदकर या ताड़ के पत्तों पर लिखा करते थे जो कि काफी कठिन व महंगा कार्य था। लेकिन फिर किसी ज्ञानी व्यक्ति ने कागज का आविष्कार किया। तत्पश्चात बदलते समय के साथ मुझे तेयार किया गया।

कागज बनने के पश्चात धीरे-धीरे सुधार के साथ उसका एक एक कागज जोड़कर बंडल के रूप में तैयार किया जाने लगा और कुछ इस तरह मेरा जन्म हुआ।

पहले मेरी सुंदरता इतनी अच्छी नहीं हुआ करती थी क्योंकि लोगों के पास इतने संसाधन भी नहीं थे। पहले बस कागज में लिखकर धागों की सहायता से जोड़कर तैयार कर दिया जाता था। लेकिन अब समय अलग, तरीका अलग है। अब मुझे बनाने की प्रक्रिया में बहुत सुधार हुआ है।

वर्तमान समय में पहले साफ-सुथरा व दूध जैसा सफेद कागज तैयार किया जाता है। उस पर पेंटिंग प्रेस की सहायता से छपाई होती है। और हां मेरी सुंदरता बढ़ाने के लिए अब अलग-अलग कलर, आड़े तिरछे अक्षरों जिन्हें font कहा जाता हैं, का उपयोग भी किया जाता है।

फिर अच्छा सा मोटा कंवर मेरे पहले व आखिरी पेज के ऊपर लगा कर मुझे तैयार कर दिया जाता है।

मुझे लगता हैं शायद मुझे खरीद बिक्री के लिए ही बनाया है। प्रेस में तैयार होने के पश्चात मुझे बड़े-बड़े बाजार और वहां से दुकानों पर बेचने के लिए भेज दिया जाता है।

अब समय आता है मेरे उपयोग का लोगों द्वारा मुझे दुकानों से एक दर से खरीदा जाता है जिन्हें आप लोग शायद पाठक कहते हैं और जिनके लिए मुझे बनाया गया है अथवा में बनी हूं।

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मेरे पाठक मुझे बड़े चाव से खरीदते हैं और फिर मुझे पढ़ते हैं। मुझे पूरा मान सम्मान देते हैं। मैं अपने अंदर पूरी दुनिया के महान व्यक्तियों, लेखक, कवि व सफल व्यक्तियों के विचार समेटी हुयी हूं। 

मेरे अंदर दुनिया का सारा ज्ञान समाया हुआ है। हां मुझे इस बात पर गर्व है और थोड़ा थोड़ा घमंड भी क्योंकि मैंने जो ज्ञान समेटा हुआ है या मैंने जिस तरह इस संसार को अपने अंदर समाया है ऐसा कोई और नहीं कर सकता है।

अगर आप यह सोचते हैं कि अब तो टेक्नोलॉजी का जमाना है। सारी चीजों को कुछ ही फाइलों में रखा जा सकता है तो यह आपकी गलतफहमी है क्योंकि आप यह भी जानते ही होंगे कि उसे कभी भी डिलीट किया जा सकता है या कभी भी हैक हो सकता है। ओर उसे कभी भी कोई भी हटा सकता हैं

मुझे यह सोच कर बड़ी खुशी होती है कि आखिर अभी तक तो मुझसे बेहतर ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे इंसान मेरी कमी को पूरा कर सके और निश्चित भी हो सके।

अगर मैं अपने घर अथवा अपने निवास की बात करूं तो मैं अपने असली निवास स्थान पुस्तकालय को मानती हूं। जहां मुझे काफी अच्छी तरह से संभाला व संग्रह करके रखा जाता है।

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पुस्तकालय बहुत बड़ा होता है। यहां मुझे अपने कई बहनों व छोटी बड़ी साथियों के साथ रखा जाता है। यहां मुझे काफी सुकून प्राप्त होता है। लोग आते हैं बड़े चाव से पढ़ते हैं और फिर संभालकर रखकर चलें जाते हैं।

हां जब मुझे खरीद कर मेरे पाठक मेरा अध्ययन करते हैं तब मुझे अपनी अलमारी में संभालकर रखते हैं। मेरे कवर पर नया कवर लगाते हैं जिससे कि मेरी सुंदरता बनी रहे और मैं साफ सुथरी रहूं। 

मेरा अध्ययन करके हर कोई व्यक्ति चाहे जितनी बड़ी मुश्किलों से छुटकारा पा सकता है। मेरे अंदर हर कठिन से कठिन रास्ते को भी आसान बनाने के उपाय आपको मिल जाएंगे। जिसमें पुस्तक को पढ़ने का सही तरीका समझ लिया वह अपनी जिंदगी में कुछ भी कर सकता है।

मुझे इंसान का सच्चा साथी माना गया है क्योंकि एक व्यक्ति को मुसीबत के समय हर अपना धोखा दे सकता है, साथ छोड़ सकता है लेकिन मैं हमेशा अपने पाठक का साथ देती हूं। मैं अपने पाठक तनाव मुक्त रखती हैं।

मेरे अध्ययन से इंसान का सोचने का तरीका बदल जाता है वह खुद को मोटिवेशनल रख सकता है।

शायद आपने सुना हो या कहीं पड़ा हो तो आपको निश्चित पता होगा दुनिया का हर success व्यक्ति मेरा अध्ययन करता है।

मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि जो व्यक्ति मिनटों में लाखों रुपए कमाता है वह भी घंटों समय मुझे पढ़ने में बिताता है।

मैं पुस्तक हूं! सबके लिए लाभकारी हूं और कभी ना साथ छोड़ने वाली साथी हूं। अगर आप भी मेरा अध्ययन करते हैं तो आप मेरा महत्त्व जानते ही होंगे और नहीं करते होंगे तो आप यह शायद भविष्य में समझ जाएंगे।

तो यह थीं मेरी आत्मकथा मुझे विश्वास है आपने मेरे बारे में पढ़ा होगा और मेरे बारे में सब कुछ जाना होगा।

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यह रहा पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध। आशा करते हैं आपको यह निबंध पसंद आया होगा और आप एक किताब की आपबीती समझे होंगे।

इस निबंध का उपयोग आप अपनें ग्रह कार्य को पूरा करने में कर सकते हैं। 

इस आत्मकथा के बारे में हमें अपने विचार जरूर बताएं और इसे अपने दोस्तों तक अवश्य पहुंचाए।

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    Frequently asked questions related to pustak ki atmakatha in hindi 

    1. पुस्तक की आत्मकथा का क्या तात्पर्य है? 
    इसका सीधा सा मतलब है कि जिस तरह हम अपनी आत्मकथा लिखते हैं उसी तरह एक किताब भी अपनी आत्मकथा बताती हैं।
     
    2. यहां किसकी आत्मकथा लिखी गई हैं
    यहां  किताब की आत्मकथा लिखी गई हैं।

    3. क्या हमें किताबो का अध्ययन करना चाहिए?
    हां हमें अपने जीवन प्रतिदिन कुछ समय किताबो को अवश्य देना चाहिए।

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