Holi Par Kavita in Hindi 2022। होली पर कविता – मगर मैं बेरंग हूँ

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होली पर कविता
Holi Par Kavita

होली पर कविता। Holi Par Kavita

रंगों का है आज त्योहार 
मगर मैं बेरंग हूँ 
था एक टाइम मैं भी खुश होता था 
बैठ पापा के कंधे सबको रंग लगाता था 
जब से तुम दूर चले गए पापा 
मेरी ज़िंदगी के सारे रंग चले गए पापा 

पापा तुम फिर वापिस आओ ना 
रंग गुलाल लाओ ना 
भर पिचकारी पानी की 
मैं आपके संग खेलूँगा 
बचपन की वो सारी यादें 
फिर से मैं जिलूँगा  
झूट मूठ की डाँट आप लगाओ ना 
पापा तुम फिर वापिस आओ ना

दूर चले गए पापा क्यूँ तुम 
क्या तुमको मेरी याद नही आती 
इस मासूम से बच्चे की 
क्या तुमको शरारतें नही सताती 

कितना निर्दयी है भगवान 
एक बच्चे से पिता का साया छिन लिया 
ख़ुशियों के दिनों में भगवन 
दुःखों का है तोहफ़ा दिया 

सारी दुनिया आज ख़ुशी मनाये
रंग बिरेंगे गुलाल उड़ाये
रंगों का है आज त्योहार 
मगर मैं बेरंग हूँ ।

घर के कोने में बैठा 
पापा की यादों के संग हूँ 
रंगो का है आज त्योहार
मगर मैं बेरंग हूँ 

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

कवि – विक्रमादित्य 

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