इस पोस्ट में हम आपके लिए लेकर आएं best Hindi Kavita . ये कवितायेँ हमारी वेबसाइट से जुड़े अलग अलग लोगो द्वारा लिखी गयी हैं जिनके नाम प्रत्येक कविता के निचे लिखा गया हैं।
Hindi Kavita – प्रदूषण है लहू में धमनियों में
कोई कहता पहाड़ो पे कोई नदियों में।
कोई कहता समाज की इन गलियों में।
या फिर झांकते यहां लोगो के दिलों में।
प्रदूषण बसने लगा है फूल कलियों में।
चले खुली हवा में घुला रहा सदियों से।
धर्म शुद्ध नही बसने लगा तपस्वियों में।
झरनों बहारो में उमस बसी कवियों में।
लेखनी क्यों घबराई है इन बस्तियों में।
नट देख न पाता इंसान की कमियों में।
नही देखता राजा रियाया की नजरों में।
कम्यूनल कार्बन है जहरीली खुशबू में।
औकात मिडिल वर्ग की ढूंढती जीने में।
कोई फैलाता इसे अर्थियों अस्थियों में।
जहर फैला हुआ है लहू में धमनियों में।
बह चला धनी वर्ग लालच के प्रवाह में।
ढूंढता खुली हवा अपने इस प्रदूषण में।
Suresh gupta
Hindi Kavita – मां का प्यार
मेरी माँ फिर से मुस्कुराने लगी है,
अंधेरी दुनिया से मेरी माँ रौशनी में आने लगी है।
हाँ प्यार हो गया है
शायद पर मुझसे छुपाने लगी है
प्यार भरे सपनों से माँ जिंदगी सजाने लगी है
मेरे सपनों को अपनी आंखो मै सजाकर
अपनी सपनों को अनदेखा करने वाली माँ,
अब आईने में मुस्कुराने लगी है
हाँ डरती है माँ शायद इस सच से
कि आँखों से झलक जाएगा प्रेम,
माँ मुझसे नज़रे मिलाने से कतराने लगी है
जाने कितने बरसों उदास रही मेरी माँ
रंगों से कतराती थीं हर चटक रंग फीका कहकर मुह जाती थी
गीतों को सुनते ही कानों पर हाथ रखने वाली मेरी माँ अब गुनगुनाने लगी है
प्रेम करती माँ मेरी सहेली सी लगती है शरारती चंचल हंसमुख एक पहेली सी लगती है
नहीं समझी थी मैं की माँ भी एक औरत है
किसी के छोड़ जाने के बाद माँ को भी तो जीने का हक है
अब समझी हूँ जीवन तो माँ और एक औरत समझ आने लगी है
माँ चुन लो एक नया जीवन
तुम्हें हक है मुस्कुराने का
एक नए सिरे से जीवन सजाने का
जानती हूँ इस जमाने की सोच तुम्हारे आगे बढ़ना स्वीकार नहीं करती
उन्हें लगता है माँ तो वो है जो झुकती है मिट्ती है समझौते करती है
अपनी हर अरमानो को ताक पर रखकर सबकी परवाह करती है
दर्द सहती हैं पर अपने लिए बात नहीं करती
पर मा तुम्हें हक है जीवन में फिर से खुश होने का
मैं खुशनसीब हूँ कि जीवन में मेरी माँ मुश्किलों को स्वीकार करती है
मेरी माँ फिर से जीने लगी है मेरी माँ प्यार करती है
Hindi Kavita- हम मित्रों की टोली
हम मित्रों की टोली
बचपन की हमजोली
नदी नाले और पहाड़
कई बार करते थे आर पार
हम मित्रों की टोली
बचपन की हमजोली
साथ गिरना और साथ संभलना
कभी न सीखा हार मानना
हम मित्रों की टोली
बचपन की हमजोली
अपनों बीच कटती थी लंबी समय
न लगती थी भूख न किसी का भय
हम मित्रों की टोली
बचपन की हमजोली
अब न जाने कहाँ तुम और कहां हम
लेंगे सात जन्म फिर भी न भूल पायेंगे हम
हम मित्रों की टोली
बचपन की हमजोली
सुरेश कुमार गोप
Hindi Kavita – तुम हो अर्धांगिनी
जब से तुम आयी हो, तुम हो अर्धांगिनी ।
बीच जीवन की मझधार में,
लेकर समेट अपनी यादों को।
बेझिझक आ गई ,
साथ निभाने को ।
लिए सात फेरे, सात कसमें,
संग निभाने सात जन्मों को।
जब से तुम आयी हो, तुम हो अर्धांगिनी ।
मैंने खुद को समर्पित किया
एक सैनिक बनकर
देश प्रेम भाव में,
और तुमने खुद को समर्पित किया
मेरी शक्ति बनकर
मेरी संसार बनाने में
जब से तुम आयी हो,तुम हो अर्धांगिनी ।
हमने सीखा
कठिनाईयों से लड़ना,
मुसीबतें आई,
मुसीबतें गई ,
हमने लड़ी लड़ाई,
क्योंकि तुमने जो संग निभाई।
सुरेश कुमार गोप
Hindi Kavita- सोचोगे जैसा बनोगे वैसा
आशमान इनके ख्वाब में
ही रह जायेगे,
अगर ये डर के जमीं के
दायरे में ही रह जायेंगे।
जिसके भी सपनो के एक बार
पर निकल आएंगे ,
वो खुले आशमान में
एक दिन उड़ ही जाएंगे।
कौन कहता हैँ कोई सपना
हक़ीक़त नहीं होता इस तरह,
कोशिश करो ढल के देखो
सोचो भी उसी तरह।
इस दुनिया में छोटे बड़े
सभी किरदार हैँ तरह तरह के,
ढल जाओगे उसी किरदार में
सोचोगे जिस तरह के।
हर किरदार बुलाता तो हैँ सबको,
डर कर कोशिश नहीं करता
तो ढालेगा किसको।
तजुर्बे मायने उसी तरह के अपनाके
ढल जाओगे देखो
उसी तरह का माहौल बनाके,
रगो में तपाक और शैदा चढ़ा के
जानोगे सपना हक़ीक़त होता हैँ
देखो एक बार कदम बढा के।
© पवन कुमार सैनी
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Hm apni poem kaise bheje