प्रस्तावना-
“आखिर क्या थे वह दिन,
खेलना कूदना और मस्ती ही मस्ती हर दिन।
पर क्या कर सकते हैं बदलना पड़ता है खुद को,
क्योंकि वक्त बदलता जा रहा है हर दिन।”
अगर कोई हमारे सामने बचपन नाम का शब्द ही उपयोग करें, तो हमें कितनी अच्छी तरह से वह दिन याद आ जाते हैं। जब खेलना कूदना, लड़ाई झगड़े करना अथवा आज यहां तो कल वहां जाने जैसे काम हुआ करते थे।
कभी-कभी उन दिनों को याद करते हुए हमें अपने आप पर हंसी तक आ जाती है। परंतु फिर भी उन दिनों से अच्छे दिन अब कहां मिल सकते हैं।
बचपन के दिन।
बड़े हो जाने के पश्चात अपने अपने पुराने दिनों को हर कोई याद करता है। और सोचने भी लगता है कि काश हमें फिर से उन दिनों का मजा लेने का मौका मिल जाए।
इस बाल्यवस्था में हमें हर तरह की छूट होती थी। जिस चीज की इच्छा प्रकट की जाए वह मिल जाया करती थी। बात बात पर झगड़ना या उठना तो हर बच्चे की खासियत होती थी।
बचपन में पूरे दिन भर खेलना कूदना ही लगा रहता था। और आखिर वह खेल भी कितने हास्यप्रद हुआ करते थे। जैसे किसी का ब्याह रचना, कहीं घूमने जाना और ना जाने क्या-क्या।
आज जब इन दिनों को याद किया जाए तो सच में रोना तक आ जाता है।
अपनी बाल्यावस्था में हर कोई वापस जाना चाहता है। परंतु यह तो प्रकृति का नियम है- जो आया है, उसे जाना तो है। यदि आज हम जवान हैं तो एक दिन बूढ़े भी अवश्य होंगे।
और बड़े भाई बहन को साथ किया हुआ झगड़ा तो शायद ही कोई भूल सकता है।
आखिर मिट्टी के बर्तन बनाकर फिर उनसे खेलना और उन्हें फिर तोड़ देना, जैसे दिनों को कौन याद नहीं करता है। पानी गिरते ही दोस्तों के संग कीचड़ में नहाने के तो अलग ही मजे थे। और फिर घर आकर मम्मी की डांट सुनना तो आम बात थी।
आखिर कैसे-कैसे हमें भूतों से डराया जाता था। और दादी नानी के द्वारा अच्छे-अच्छे कहानियां सुनाई जाती थी।
जब कोई कहता था कि बेटा तुझे यह नहीं करना है, तो उस काम को पहले करने में तो जो मजा था। वह आज किसी काम को करने में नहीं है। जब मेले में से पिताजी द्वारा खिलौने दिलाये जाते थे। तब तो उसके पुर्जे पुर्जे बिखेर कर फिर उन्हें जोड़ना तो वैज्ञानिकों के काम करने जैसा था।
आखिर क्यों उन दिनों को याद किया जाता है?
धीरे धीरे बड़े हो जाने पर हमारे ऊपर मां-बाप द्वारा ध्यान कम दिया जाने लगता है। यदि किसी के साथ झगड़ा हो जाए तो उसे निपटना भी आसान नहीं होता है।😀😀
अब समय के साथ साथ हमारे ऊपर जिम्मेदारियां बढ़ने लगती है। कभी यह काम करने को कहा जाता है, तो कभी वह।
खेलना कूदना छोड़कर हमें पाठशाला जाना पड़ता है। यहां शिक्षकों की अलग चिक चिक सुनना पड़ती है। धीरे-धीरे प्रत्येक व्यक्ति पर बोझ बढ़ने लगता है। जिस कारण हर को अपने बचपन को याद करता है।
निष्कर्ष
आखिर किसी ने सच ही कहा है कि आपके पास जो भी जैसा भी वर्तमान में समय है। उसका पूरी तरह से लुफ्त उठाओ।क्योंकि बीता हुआ समय वापस कभी लौटकर नहीं आता। और समय तो लगातार बीतता जा रहा है।
तो आप अभी जिस भी स्थिति में है। यानी कि यदि आपके बचपन का समय निकल भी चुका है, तो भी आप वर्तमान समय का भरपूर उपयोग कीजिए। क्योंकि यह जवानी का समय आपको फिर बुढ़ापे में याद आएगा।