हिंदी की कुछ अच्छी कविता best poem in hindi

Reading Time: 5 minutes
हिंदी की कुछ अच्छी कविता

हिंदी की कुछ अच्छी कविता- मेहनत

हाथ फैला कर मांग ना भीख।
अपने पैरों पर चलना सीख।।
कुछ हासिल तुझको तब होगा,
जब तू खुद को देगा तकलीफ।।
सोया है, तू खोया है,
तेरे सपने में सपनों की भीड़।।
खुद के अंदर खुद को ढूंढ,
तुझको है बस तेरी Need (जरुरत)।।
किसी से क्या उम्मीद लगाना।
आ जंग में, छोड़ बहाना।।
कोई मंजिल तक नहीं पहुंचाता,
रास्ते अपने खुद बनाना ।।
लोगों की यहाँ सुनना ही नहीं,
दोगला है ये सारा जमाना।।
कदम उठा मेरे साथ तू चल।
तू आज बना तेरा होगा कल।।
एक बार जो निकल गया,
फिर ना आने का ये पल।।
फंसा है तू ख़ुदके ही जाल में,
जोर लगा और निकाल तू हल।।
Dream है तेरा Famous होना,
तो बैठा क्यूं भाई मेहनत कर।।
कर तू वही जो कहे तेरा दिल।
पार कर तू हर एक मुश्किल।।
सपनों को मारकर जियेगा तू,
तो कहलायेगा, खुदका कातिल।।
जीत जायेगा खुदसे अगर,
हराने वाला कोई नहीं फिर।।
मेहनत को तू बना ले आदत,
कदमों मे होगी तेरी मंजिल।।

D Kartik G

———————————–

हिंदी की कुछ अच्छी कविता – विरह फूल का कविता

है फल झड़ा प्रीतम से अपने,
अलग थलग जहाँ तहाँ गिरे।
बने कचूमर पैर तले,
या प्रभु चरणो में राज करे।।

दर्द भरा विरह सहकर जाए,
या सूख झड़ वहाँ से गिरे।
है भाग में क्या उसके,
जिस जरिये वह विरह सहे।।

विरह कटू सत्य उसके जीवन का जो अर्थ बने,
प्रत्येक जीवन उस अर्थ का कारणाश्री बने।

एक बने विरह का कारण अपने प्रभु से मिलन खातिर,
दूजा विरह का करण बने घनेरे बाल सजने खातिर।

कभी खेल का साधन बनने को वह विरह सहे,
कभी उदर में जा भूख भरने को दर्द सहे।

कभी त्याग विरह को,
स्वयं में जीवन का संचार करें।
स्वयं के ही अस्तित्व खातिर,
स्वयं का ही बलिदान करें।।

नहीं भोला न लाचार वो,
स्वयं का वही आधार जो।

चरण की अभिलाषा में,
कचूमर बनना तो सहना होगा।
घनेरे बालों की शोभा खातिर,
विरह को तो सहना होगा।।

नाम – शिवा गहलौत
उम्र – 16

————————————

आसान थोड़ी है

किसी के बिना रहना आसान थोड़ी है
ये जो तस्वीर है दीवार पर
बहुत बोलती हैं
बेजान थोड़ी है
हर कोई नहीं सुन सकता है आवाज़ इसकी
क्योंकि सबके हमारी तरह कान थोड़ी है
अब तो दूसरी ही है धरती हमारी
पर वो दूसरी हमारा आसमान थोड़ी है
चले जायेंगे हम भी एक दिन सब कुछ छोड़ कर
हमारा ये कोनसा स्थाई मकान थोड़ी है
यादों का काफ़िला चलता है हमारे साथ में
हम अकेले इन्सान थोड़ी है
ये तो जिम्मेदारियों ने दबा रखा है
वरना हम दबने वाले इन्सान थोड़ी है
गम तो सभी के हिस्से में आंएगे कभी ना कभी
वरना ये अजियत’ हमारा खानदानी मकान थोड़ी है
उसका ही है सब कुछ हमारा
वरना उसके बिना हमारी कोई
और पहचान थोड़ी है
सिर्फ उसके लिए ही है सब कुछ हमारा
उसके सिवा
और कोई दूसरी हमारी जान थोड़ी है
हम मोनू बौद्ध है सिर्फ उसके लिए बने हैं
दूसरी में कहां बसती हमारी जान थोड़ी है…

———————————

स्त्री का मौन

तुमने देखा है कभी,
उस स्त्री को,
जो खामोशी से बुनती है
अपने सपनों के ताने-बाने
उसकी आँखों में छिपे हुए हैं
वर्षों के आँसू,
जो कभी बहने नहीं दिए उसने।

उसकी हंसी के पीछे
छुपा हुआ है
दर्द का अनंत सागर,
जो वह अपने भीतर छिपा लेती है
दुनिया की नजरों से बचाकर।

वह हर रोज़ जीती है
अपनी छोटी-छोटी मौतें,
और फिर भी मुस्कुरा देती है
जैसे उसने कुछ खोया ही न हो।

वह चलती है
उस पतली डोर पर,
जो उसे समाज ने दी है
एक बंधन के रूप में,
लेकिन वह जानती है
कि यह डोर ही उसकी ताकत है।

उसके मौन में छिपा हुआ है
एक विद्रोह,
जो किसी दिन फूट पड़ेगा
आंधी बनकर,
और तब उसकी चुप्पी
गूंजेगी आसमानों में,
बनकर उसकी पहचान।

ज्योति
शोधार्थी

——————————

प्रश्न

समाज की यह सड़ान्ध
जिसे हमेशा ढक ढक कर
छुपाने की कोशिश की गई
अब भभकारे मारती हुई
दम बंद करने को है
क्या यह एक दिन मे फैली है?
कहां से शुरु होती है यह सड़न ?
कैसे खत्म होगी यह ?
क्या पितृसत्ता के दलदल में धंसी हुई आधी आबादी
जो खुद भी जाने अनजाने एक दूसरे की टांग खींच
फिर फिर उसी में धंस जाती हैं
उस दलदल में आधी-आधी सनी वे
हाथ में मोमबत्ती लिए
मस्तिष्क में हजारो अनुत्तरित प्रश्नों का बोझा लिए
सारा जोर लगाकर भी क्या
निकाल पाएंगी अपनी पीढियों को
इस दलदल से समान जमीन पर?
बिना जाने की कहां तक फैला है
और कितना गहरा है यह दलदल?
बिना समझे कि यह सड़ान्ध कहां से शुरू होती है?
बिना सोचे कि इसकी जड़ो पर चोट कैसे की जाय?
बाकी आधी आबादी भी जो इस वक्त
मोमबत्तियां लेकर साथ चल पड़ी है
क्या प्रतिबद्ध है इन प्रश्नों के उत्तर खंगालने के लिए ?

श्वेता शर्मा

कल्पना से परे

कल्पना चावला के से सपने लेकर
बड़ी होती हमारी बेटियां
काश कि नदी ,झरने ,आकाश ,फुल ,तितलियों
और चांद सितारों से भरी सुंदर पृथ्वी की
कल्पना लिए भी बड़ी हो पाती
कल्पना से परे पाशविकता का जो चेहरा
उन्होंने खबरों में देखा सुना
पता नहीं वह जीवन के बारे में
उनकी कल्पनाओं को कहां ठहराएगा
अब मातायें नही सुना सकती परी-कथाएं
नहीं सुना सकती सिर्फ नारियों के अदम्य साहस की कथाएं क्योंकि एक बहुत बड़ी फेहरिस्त है नर-पिशाच कथाओं की भी
जो सुनानी होगी उन्हें
हमें उन्नाव सुनाना होगा
हमें दामिनी सुनाना होगा
हमें गुड़िया सुनाना होगा
हाथरस सुनाना होगा
मणिपुर सुनाना होगा
आर .जी .कर कॉलेज सुनाना होगा
…………………………………..

वे हर रोज देख सुन रही है खबरें भी
सड़कों पर देख रही है सैलाब भी
और शायद कल्पना कर रहीं है कि जरूर कुछ बदलेगा
पर कैसे बताएं माताएं उन्हें
कि यह उनकी कल्पना भर है

क्या कर सकती है माताएं उन्हें निश्चिंत ?
क्या कर सकती हैं माताएं उन्हें आश्वस्त ?

कि यह जो सैलाब है वह हर बार निकलेगा
पराकाष्ठा होने की राह तके बिना ही
और मुखौटा उतार कर रख देगा घिनौनी राजनीति का
बहा ले जाएगा सारी पाशविकता
सब कुछ बहुत सुंदर हो जाएगा फिर से
इस पृथ्वी पर कल्पनाओ जैसा।

श्वेता शर्मा

Read also – सबसे अच्छी कविता

Spread the love

Leave a Comment