किसी को देखकर क्यों। kisi ko dekhkar kyon kavita

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कविता: किसी को देखकर क्यों

किसी को देखकर क्यों

जागते है दबे अरमां 

किसी को देखकर क्यों||

होता है अपने होने का गुमां 

किसी को देखकर क्यों 

हयात लगती है इतनी खूबसूरत

किसी को देखकर क्यों

बदलती है शक्ल- ओ- सूरत 

किसी को देख कर क्यों…।।

कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

Name : विशाल शुक्ला भैरोपुर, मिसरोद

भोपाल, मध्यप्रदेश

आशा करते हैं आपको पसंद आईं होंगी। ओर आपको अच्छी लगी होगी।

अब आपसे एक ही निवेदन हैं कि इस सुंदर सी कविता के बारे में अपने विचार comment करके बताएं व अपने साथियों के साथ निचे दिख रहें share बटन की सहायता से अवश्य अवश्य साझा करें।

और हिंदी अंश को विजिट करते रहें।  

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