सपनों का सफर पर कविता |
सपनों का सफर पर कविता
मै कलम से लिखता जरूर हूं
मगर दिल में अरमान रखता हूं !
सपने सच हो या ना हो पर
सपने देखता जरूर हूं …
हर व्यक्ति में खौफ है
तलवार की धाक है
हर क्रांतिकारी में
भाव देश का रखता जरूर हूं…
हर किसी की मंजिल पास है
मगर रास्ता गुम रहता है
मगर आज भी उस मंजिल को
खोजता जरूर हूं…
मै कल झूठ के साथ था
मगर आज सच के साथ हूं
आज जागा हूं फक्र
इसका करता जरूर हूं…
आज भी उस मां की
आंखो में आंसू है
पर उन्हें पोछने के लिए
तत्पर जरूर हूं …
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: राजाराम ‘ राजा
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