हर अंत एक शुरुआत है |
हर अंत एक शुरुआत है – कविता | Har ant Ek Shuruwat Kavita
पतंग कट कर गिर जाती है लेकिन,
डोर मालिक के पास रहती है |
सीमा पार चले जाने वाले चले जाते हैं,
मगर, आपसी प्यार साथ रह जाता है |
फसलें कितनी भी कट जाए,
वापस खेत लहराते हैं |
दीपक के बुझते बुझते,
भोर किरण आ जाती है |
मौत के मुंह से भी बच कर,
एक नन्हीं कली खील जाती है |
अंत किसी का होता नहीं,
हर अंत एक शुरुआत है|||
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कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
कवयित्री: दिव्या शुक्ला
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