किताब पर कविता – किताब मेरी चार आने की। Kitab par kavita hindi main

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Kitab par kavita hindi main
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किताब पर कविता – किताब मेरी चार आने की

पहले दिन स्कूल गया जब
खरीदी किताब चार आने की
काली किताब,काले थे पन्ने,
दाम था जिसका चार आने की

बार बार मां थी समझाती,
फट न जाए,चुर न जाए
महंगी है किताब चार आने की
खरीदी किताब चार आने की

खूब पढ़ी,खूब रटी 
महंगी थी किताब चार आने की
मास्टर जी ने किताब जब मांगी
झट से मैं बोला,किताब मेरी है चार आने की

मास्टर जी को गुस्सा फिर आया
सबसे आगे मुझको बुलाया
सारे दिन धूप में मुर्गा बनाया
सजा मिली न फरमाने की

मां ने देखा लाल है लाल
सारा पूछा दिन का हाल
झट सीने से मुझे  लगाया
सजा मिली तुझे न फरमाने  की

खूब पढ़ाया, खूब समझाया
छोटी सी थी किताब, चार आने की
तब न समझा,अब मैं समझा
महंगी थी किताब चार आने की 

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है। 


लेखक:   नन्ना कवि 
            राहुल भारद्वाज

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