Nadi ki atmakatha essay in Hindi

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Nadi ki atmakatha in Hindi। नदी की आत्मकथा पर निबंध।

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आज हम इस लेख में पढ़ने वाले हैं, Nadi ki atmakatha in Hindi।  अगर आप इस विषय पर निबंध पढ़ना चाहते हैं, ओर कबसे इस विषय पर निबंध ढूंढ रहे हैं तो बिल्कुल सही जगह पहुंचे हैं।

नदी की आत्मकथा पर छोटा निबंध (400 शब्द) nadi ki atmakatha short essay in Hindi

में नदी हुं, मुझे आप सभी जानते ही होंगे। और मुझे बड़ी प्यार से, मेरे विकराल रूप अथवा शांत स्वभाव दोनों को देखा ही होगा। कहीं ना कहीं मेरा यह अलग-अलग रूप इंसान की गलतियों के कारण ही हुआ है।
मेरे दूसरे नाम भी शायद आप जानते हैं ही होंगे। पर चलिए बताती हूं। मुझे लोग सरिता, वाहिनी, नद के नाम से भी जानते हैं। वैसे तो अब लोगों ने अपने अनुसार मेरे कई दूसरे नाम भी रख दिए है।
मेरा कोई निश्चित स्थान या रहने का स्थान नहीं है। जहां से में अपने आप को पूर्ण कर लेती हूं वही से चल देती हूं और अपने गंतव्य जिसका शुरुवात में मुझे भी पता नहीं रहता है वहां के लिए निकल पड़ती हूं।
आमतौर पर में ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से छोटी छोटी सरिताओं के रूप में निकलती हूं और अपना धीरे-धीरे बड़ा रूप करते हुए जंगलों से गुजरते हुए कहीं महासागर में पहुंच जाती हूं।
अगर मेरे स्वभाव की तुम्हें बताऊं तो मैं काफी शांत रहती हूं। कल कल करते हुए मैं सिर्फ अपने मार्ग से निकल जाती हूं।
 लेकिन हां इन इंसानों ने मुझे अपना विकराल रूप लेने पर मजबूर कर दिया है। मनुष्य अब धीरे-धीरे बदल रहा है शायद मुझे भी अब और बदलना पड़ेगा।
शायद इंसान यह भूलता जा रहा है कि मैं ही हूं जो इसके हर वक्त काम आती हूं। प्यासे की प्यास बुझाती हूं। और किसी प्यासे की प्यास को शांत कराने के दौरान मुझे जो सुकून प्राप्त होता है उसे शायद कहीं प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
किसान अपनी फसल को तैयार करने के लिए वर्षा के पश्चात सबसे ज्यादा मुझ पर निर्भर रहता है लेकिन कहीं ना कहीं उनका कचरा फिर मुझे ही खिला देते हैं।
उद्योग में मेरा पानी का उपयोग करने के लिए बड़े प्यार से मेरे पानी को ले जाते हैं। फिर कुछ समय पश्चात गंदे पानी को मुझे पिला देते हैं। जैसे मैं कुछ समझती ही नहीं हूं।
देखने में, मैं जितनी सुंदर व आकर्षणकारी हूं। अंदर से उतनी ही भयानक भी हूं। और शायद मुझे आशा है मेरे दोनों रूप आपने अवश्य देखें होंगे।
में इस स्वार्थी इंसान के लिए इतनी उपयोगी हूं कि यह मुझे रोकने के लिए क्या-क्या नहीं करते हैं।
कभी मेरे रस्ते में बड़े-बड़े बांध बनाते हैं तो कभी मेरे मार्ग बदलने का प्रयास करते हैं।
लेकिन मेरी मंजिल निश्चित है मैं अपना छोटा रूप, बड़ा करती हूं और फिर वहां से भी निकल जाती हूं।
कई परेशानियों का सामना करने पर भी मैं कभी रुकती नहीं हूं और ना ही कभी थकती हूं।
मैं तो कहती हूं इस पापी और नीलज्ज व्यक्तियों को मुझसे कुछ सीखना चाहिए जो हर छोटी छोटी मुश्किलों में अपनी किस्मत को कोसता है।
इसको मुझ से सीखना चाहिए कि अगर मंजिल निश्चित हैं और यदि अपने मार्ग में हम निरंतर चलते रहें अर्थात लगातार प्रयास करते रहे तो हम एक दिन अवश्य सफल होंगे।
क्या आप जानते हैं मुझमें इतनी क्षमता है कि मैं जहां से भी गुजरती हूं उस स्थान को हरा भरा कर देती हूं। जिसे कोई नहीं कर सकता है। वहीं दुसरी और हरे भरे क्षेत्र को बंजर भी बना सकती हूं।
इंसानों के लिए उपयोगी होने के साथ-साथ में कई हजारों प्रकार के छोटे-छोटे जीव जंतुओं को रहने के लिए आश्रय देता हूं। और वह मेरी नीर का उपयोग करते हैं तथा जीवित रहते हैं।
कभी-कभी मुझे गर्व होता है कि प्रकृति ने मुझे इस पर्यावरण के लिए इतना सब कुछ करने का मौका प्रदान किया है। इसके लिए मुझे खुद पर बहुत गर्व भी है।

नदी की आत्मकथा पर बड़ा निबंध (600 शब्द) nadi ki atmakatha Long essay in Hindi

  • अपना परिचय

मैं नदी हूं! शायद मुझे आप इस नाम से अवश्य जानते होंगे। ऐसा कहने के पीछे मेरा यह कारण है कि दरअसल मेरे दूसरे और कई नाम है जैसे सरिता, प्रवाहिनी, नद, शैवालिनी, निर्जल रिणी, शेलजा, तरंगिणी, वाहिनी इत्यादि
मेरा कोई स्थान निश्चित नहीं है। दरअसल मेरा जन्म पहाड़ों में हुआ है। शुरुआत में मैं छोटी छोटी झरनों के रूप में जमीन पर पहुंचती हूं और फिर सारे झरनों का एक रूप होकर नदी के रूप में तब्दील हो जाती हूं।
अगर मैं आपसे पूछो कि मैं कौन हूं तो शायद आप बताएंगे कि मैं निर्जीव नदी हूं। और पानी को अपने साथ लिए बहती हूं।
सही भी है लेकिन मैं सब समझती हूं। इंसानों द्वारा मेरा उपयोग करना और फिर मुझे ही गंदा कर देना। पर मैं कुछ कहती नहीं हूं। और शायद कुछ कह भी नहीं सकती क्योंकि प्रकृति ने मुझे ऐसा ही बनाया है। चुपचाप सब सह लेती हूं।
दरअसल में बड़ी चंचल हूं और शांत स्वभाव की भी।
कल कल की आवाज करते हुए बस चलती जाती हूं चलती जाती हूं और बस चलती जाती हूं। शायद मुझे कभी प्रकृति ने रुकना सिखाया ही नहीं है।
मैं स्वतंत्र होकर बहती हूं। मेरे लिए कोई राष्ट्र देश स्थानीय बोली का महत्व नहीं है। मैं अपनी आजादी के साथ कहीं से भी गुजर सकती हूं।
मेरी एक निश्चित मंजिल है मुझे पता है पहाड़ों से निकल कर फिर मुझे महासागरों में जाकर मिलना है लेकिन जिस तरह आपका एक निश्चित मार्ग होता है उस तरह मेरा कोई रास्ता नहीं है।
पहाड़ों से निकलकर ढलान की ओर बढ़ते हुए मैदान से होते हुए जिधर मुझे मेरा रास्ता आसान लगता है उधर में अपना मार्ग बना लेती हूं।
मेंरी सर्प रूपी संरचना का यही कारण है
मनुष्य की प्यास बुझाने उसके सैकड़ों कार्यों को आसान करने के साथ-साथ कई प्रकार के जीव जंतुओं, पेड़ पौधों को अपने अंदर आश्चर्य देती हूं। मैदानों से गुजरने के दौरान मैं, कई समय से वीरान पड़े सूखे क्षेत्रों को भी में हरा भरा कर देती हूं। अर्थात मैं हरियाली उगाने की शक्ति भी रखती हूं।
क्या आप जानते हैं पर्यावरण संतुलन के लिए भी मेरा महत्वपूर्ण योगदान है। जीव जंतु पशु पक्षियों को पेड़ पौधों को हमेशा सजीव बनाए रखती हूं।

  • मेरे रास्ते में आने वाली समस्याएं 

हर कोई सोचता है मेरी जिंदगी कितनी अच्छी है पर ऐसा कुछ नहीं है दोस्तों,
मुझे कई ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिनको देखते ही मुझे लगता है कि मुझे भी अपना विकराल रूप ले लेना चाहिए लेकिन मैं फिर सोचती हूं मुझे रुकना नहीं है इन परेशानियों को हल करना होगा और मैं एक दिन सफल भी होती हूं।
क्या आप मेरी परेशानिया सुनना चाहते हैं चलिए कुछ सुनाती हूं।
मैं इंसानों की इतनी सेवा करती हूं हरवक्त हरपल उनके लिए उपलब्ध रहती हूं। लेकिन कुछ लालच के कारण यह मुझे अपने वश में करने का प्रयास कर रहा है।
जगह-जगह बांध बनाता है। मेरे रास्ते को रोकने का प्रयास करता है जिस कारण मुझे अपने मार्ग को बदलना पड़ता है। क्योंकि रुकना तो मुझे सिखाया ही नहीं गया है।
 
मार्ग बदलने के दौरान कुछ नुकसान इन्हें भी होता है जिसका दोष भी मुझे ही दिया जाता है लेकिन कोई बात नहीं मैं फिर भी शांत रहती हूं।
मेरा उपयोग करने के दौरान मीठे मीठे वचनों व अच्छे स्वभाव के साथ मुझे अपना लेते हैं लेकिन फिर मुझे गंदा करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ता है।
प्रतिदिन हजारों टन कचरा, प्लास्टिक, कुड़ा मेरे अंदर निस्वार्थ होकर छोड़ दिया जाता है। इसका दोष भी आगे चलकर मुझे ही मिलता है यह कितनी गंदी है लेकिन कोई नहीं। सबकुछ चुपचाप सुन लेती हूं और प्राकृतिक तरीके से अपनी यात्रा के दौरान अपने आप को साफ करने में लगी रहती हूं।
वाकई में, मेरी जो पहले सुंदरता हुआ करती थी वह अब नहीं रही हैं। पहले में स्वतंत्र बहती थी कोई मेरे रास्ते में कोई नहीं आता था। अब जगह जगह रेत खनन का कार्य चलता रहता है तो कहीं बांध निर्माण।

  • मुझसे सीखने लायक कुछ बातें 

आपने अभी तक मुझसे क्या-क्या सीखा है या बस ऐसे ही एक नदी के तौर पर मुझे जानते हैं।
मुझमें ऐसी कई अच्छाइयां है जिनसे इंसानों को कुछ सीखना चाहिए।
मैं निर्जीव हूं लेकिन निरंतर चलती रहती हूं, बहती रहती हूं। कभी रुकती नहीं हूं। एक बार चलना शुरू करने के पश्चात अपनी मंजिल तक पहुंचने तक बस चलती जाती हूं। जबकि सजीव व अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानने वाला प्राणी मनुष्य हर छोटी सी मुश्किल से हार मान लेता है।
में एक जगह से शुरुवात करने के पश्चात कभी भी वापस नहीं लौटती हूं अथवा कभी पीछे मुड़कर भी नहीं देखती हूं।
मुझे रोकने के लिए मेरे रास्ते में बांध बना दिए जाते हैं लेकिन मैं फिर एक नया रास्ता खोज लेती हूं। इसी तरह इंसान को भी अपने हर कठिनाइयों का हल ढूंढना चाहिए ना कि ऐसे हार मान कर बैठना चाहिए।
मुझे मेरे मार्ग में जगह-जगह गंदा किया जाता है लोग मुझ पर कई प्रकार का कीचड़ उछालते हैं लेकिन मैं बस सब सहन कर लेती हूं और एक दिन अपनी मंजिल तक पहुंचने में जरूर सफल होती हूं। 
खुद के प्रयासों से अपने आप को स्वच्छ भी कर लेती ही और हमेशा अपने आप को स्वच्छ रखने की कोशिश करती हु।

  • उपसंहार

तो ऐसी थी मेरी आत्मकथा। हर दिन हर समय, हर दिन हर समय निरंतर बहने वाली में कई मुश्किलों का सामना करती हूं। लेकिन मुझे इन सब को नजरअंदाज करना पड़ता है।

और हां जैसे कि मैंने बताया था मेरी मंजिल महासागर में मिलना है। महासागर में जाने के पश्चात मेरी मुलाकात मेरी जैसी सैकड़ों दूसरी नदियों से होती है जिन्हें मै अपनी बहने मानती हूं, हम वहां खूब मजे करते हैं और फिर सब मिलकर साथ रहते हैं।

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