हिंदी कविता – अधूरा प्रेम |
हिंदी कविता – अधूरा प्रेम
मिले थे हम जब इस जग में
बादल भी खूब बरसा था
थे भीगे साथ में हम दोनों
थे घूमे साथ में हम दोनों
था मोहक कितना वो दिन भला
जब सुख दुख हमने बांटा था
निकले सफ़र पर हम अनजाने थे
बने दोस्त फिर घंटो बतियाते थे
सब कुछ अच्छा बीत रहा था
खुशियों से दिल भीग रहा था
फिर लगी समय की ऐसी नजर
हुआ कुछ ऐसा जिसकी नहीं थी कोई खबर
तुमने मुझको ये क्या बतलाया
है कैंसर से ग्रसित तुम्हारी काया
यह सुन कर हर सपना चूर हुआ है
चंचल दिल मेरा द्रवित हुआ है
यार से मिलने को यह तड़प उठा है
कदम दौड़ता अब प्रकाश गति से
हुई भेट मगर कुछ देर घड़ी में
हाय यह क्या देखा?और क्यों देखा
जो हैं सबसे सुंदर,उनको दुर्बल देखा
है कैसी दशा किया इस कैंसर ने?
हंसते खेलते चेहरे को मौन किया
दुख से पीड़ित है उसका मन
है शिथिल हुआ उसका जीवन
घर से हॉस्पिटल,हॉस्पिटल से घर
है कितना ये क्रूर सफ़र
जो लड़की कर लेती थी अकेले हर काम सफल
अब उठने बैठने में भी लेती है बहन की मदद
कैंसर ने तुमको कितना तोड़ा है
फिर भी खड़ी है बनकर देखो मर्दानी गजब
है लड़ती हर एक सांस से वो
है बढ़ती आगे कितने अभिमान से वो
न कुछ खाया है मन का
न कुछ पिया है मन का
है बीत गया ऐसे ही एक बरस
मेरी दुआ भी उनके कोई काम न आई
महंगी दवाइयां भी कोई रंग न दिखलाई
ना जाने ईश्वर ने क्या लिख रहा है
किस्मत में खुशियां कम दुख ज्यादा रखा है
अब दिन जैसे तैसे बीत रहे है
खुशियां हमसे रूठ रहे है
जीवन की डोर टूट रही है
आईं ये कैसी मनहूस घड़ी है
चारो तरफ प्रलाप बड़ी है
कैंसर आज जीता है
मर्दानी को लुटा है
है मुझको अब तक खबर कोई न
ना ही किसी ने मुझको बतलाया है
वो जा रही थी दुनिया से जब
ना देख सका उनको अंतिम छड़ मैं तब
है दिल में कितनी चोट लगी
अब किसको ये बतलाऊ मै
जो सुनती थी हर एक बात मेरी
है वो मुझको छोड़कर जा चुकी।।
कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: धीरज”प्रीतो
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