मौला मेरे…
इस दुनिया में रहना नहीं
ना ख्वाहिश किसी आसमान की||
तुम ना मिलो मैं ना मिलूं
मुझे चाहत नहीं तेरे प्यार की||
मैं हूं रब का एक बंदा
नूर है उसका सब में |
खाली हूं फिर भी भरा हुआ
तेरे प्यार से ऐ मौला मेरे|
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कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
कवयित्री: दिव्या शुक्ला
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बहुत बढ़िया शानदार