में और मेरी कल्पना कविता | Me or Meri Kalpna Kavita

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में और मेरी कल्पना कविता

जब भी तुम्हे देखूं
तुम आंखो में बस जाते हों
अंजान होकर भी क्यों
तुम मेरे मन में समाते हो
फासले कुछ पलों के
आखिर कभी तो होंगे दूर…

विश्वास है मुझे,
हम मिलेंगे जरूर।

बाते तुम्हारी सारी
में महसूस करती हूं
लाकर तुम्हारा ख्याल
उदासी को खुश करती हूं
कब तक होगा ये एहसास
कभी तो देखेंगे जरूर…

विश्वास है मुझे,
हम मिलेंगे जरूर।

आते ही तुम्हारा ख्वाब
ये हवाएं बदल जाती है
रोशनी भी देख तुम्हे फिर
शीतलता में ढल जाती है
काल्पनिकता होगी कब तक
कभी तो छाएगा ये सुरूर…

विश्वास है मुझे,
हम मिलेंगे जरूर।

                              – भारती शर्मा

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