मिले जब कभी मुस्कुरा कर मिले कविता | Mile jab kabhi kavita
मिले जब कभी मुस्कुरा कर मिले
कई बार हँसना चमत्कार था I0
गुन्हेगार जिनको सभी कहते थे
उन्ही की जुल्फों में गिरफ्तार था I
खुने दिल से ख़त वो लिखा करते थे
उसे मुझसे बेइंतहा प्यार था I
भरी जिंदगी काँटों से थी मगर
खुशी देख जहा दिल का गुलज़ार था I
किसी हूर परी कि तस्वीर थी
जिसे रंगना आज दुश्वार था I
जिसे समझता था जिंदगी देखो
उसी को मुझ पर ना ऐतबार था I
चले संग जहाँ ले जाये ये हवा
न कोई कही मेरा घर-बार था I
दिलो बीच दीवार नदियाँ बनी
रहा इस तरफ मै वो उस पार था I
नहीं कुछ पता देख ‘ राकेश ‘ को
गम-ए- इश्क में वो तो बीमार था I
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: राकेश मौर्य
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