भुखमरी पर कविता
लगातार बढ़ती जनसंख्या और सीमित संसाधनों के चलते प्रतिवर्ष हमें अलग अलग तरह के आंकड़े देखने को मिलते हैं, आज हम लेकर आए हैं भुखमरी से ही सम्बन्धित कविता जिसमे एक छोटा बच्चा अमीरों का जन्मदिन मनते देखता है,
वह सोचता है कि इन लोगों के जाने के पश्चात शायद बचा हुआ खाना खाकर में अपना पेट भर सकता हूं लेकिन उसे फिर भी भूखा ही सोना पड़ता हैं।
भुखमरी पर कविता |
भुखमरी पर कविता “अमीरों का जन्मदिन “
मां मैं सड़क से उठ कर गया,
केक खाने।
आखों में एक उम्मीद सी लिए,
दूर से खड़ा सब देख रहा था,
एक रंगबिरंगा बड़ा सा केक।
2 दिन की भूख के बाद ,
देखा मैने एक बड़ा सा केक।
सोचा थोड़ा सा मैं खा लूंं,
थोड़ा ले लू मां के लिए ।
पर मां मैने क्या देखा ?
मां वो केक खाते नहीं केक से खेलते है।
सोचा मैने, कहीं कुछ बच जाए!
ओर वो फेक दे कचरे मे,
और मैं कचरे में से उठाकर खाने में जरा सी भी देर ना करू ।
पर मां वो अमीरों का जन्मदिन था।
वो फेक रहे थे एक दूसरे पर,
वो केक से खेल कर हस रहे थे।
ओर मां में दूर से देख कर रो रहा था,
कि आज भी भूखा ही सोना है।
मां मैने देखा अमीरों का जन्मदिन ।
कवयित्री द्वारा इस गीत को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह गीत उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाया है।
Name :- Nikita Sonu Pandya
Address ;- Bhinder
Dist :- Udaipur Rajsthan.
आशा करते हैं आपको यह कविता पसंद आईं होंगी। ओर आपको अच्छी लगी होगी।
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