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बचपन बचाओ – गुम होता बचपन पर निबंध
प्रस्तावना
अब धिरे- धीरे समय बदलता जा रहा है। और हम टेक्नोलॉजी की दुनिया में आगे बढ़ते जा रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चों को तो ना जाने टेक्नोलॉजी की नजर लग गई है।
आजकल बच्चे खेलना कूदना भूल गए हैं। स्कूल की किताबों का बोझ तो ऐसे उनके ऊपर लाद दिया जाता है। जैसे आगे चलकर दुनिया का मालिक उन्हीं को बनना है।
पहले के बचपन के समय और अब के समय में अंतर?
अब समय बीत चुका है पहले बच्चों का गली-गली में खेलना कूदना और शोर-शराबा हुआ करता था।
आजकल माता पिता अपने बच्चे को घर से बाहर नहीं निकलने देते हैं। अथवा बच्चे घर से बाहर निकलते भी है तो उन्हे उनके बच्चे की चिंता सताने लगती है।
पहले छोटे-छोटे बच्चे समूह बनाकर कई खेल खेला करते थे। जिस कारण उनकी शाररिक व मानसिक शक्ति बहुत तेज हुआ करती थी। परंतु आज यही ख़ेल मोबाइल में खेले जाने लगे हैं।पहले बच्चे दिनभर खेलने के कारण शाम को थक कर चैन की नींद सोते थे। जबकि आज मोबाइल के कारण इन्हें दिन रात की उगते ही नहीं उड़ती है।
कुछ ऐसे कारण जिस कारण बच्चों का बचपन खतरे में है-
टेक्नोलॉजी का प्रभाव
हमारी जिंदगी में आज हर काम को करने की जगह टेक्नोलॉजी ने ले ली है। वर्तमान का मनुष्य उठकर पानी भी पीना नहीं चाहता। वह सोचता है काश यह काम भी करने वाला कोई होता। सब दिन रात आराम करना चाहते हैं। परंतु उन्हें कहां पता है इससे हमारी सेहत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
छोटे-छोटे बच्चे दिन भर मोबाइल में घुसे रहते हैं। जो खेल उन्हें अपनी सेहत को स्वस्थ रखने के लिए खेलने चाहिए थे। वे खेल आज एक जगह बैठे बैठे मोबाइल में खेले जा रहे हैं।
आजकल छोटे-छोटे बच्चे घर से बाहर निकलना नहीं चाहते। वें अपने दोस्तों के साथ गली मोहल्ले में घूमनां नहीं चाहते। क्योंकि उनके पास मोबाइल है। जिसमें वे चाहे जो खेल खेल सकते हैं।
माता-पिता का प्रभाव
वर्तमान में प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चे को बड़ा आदमी बनना देखना चाहते हैं। या तो वे यह दूसरे को देखते हुए सोचते हैं, कि मेरे बच्चे को यह बनना चाहिए या वें अपनी इच्छा अर्थात अपने शौक उनके ऊपर थोपने की कोशिश करते हैं। जो माता-पिता किसी कारणवश अपने सपने को पूरा नहीं कर पाते हैं। वे सोचते हैं कि उनकी यह इच्छा उनके बच्चे पूरी करें।
इसका समाज पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। जैसे ही कोई बच्चा समझदार होता है, या समझने लगता है। उसकी पीठ पर भारी मात्रा में वजन थोप दिया जाता है। और उन्हें स्कूल भेजना शुरू कर दिया जाता है।
लोगों की मानसिकता-
वर्तमान समय में हर माता-पिता के दिमाग में यह मानसिकता भरी पड़ी है कि अगर उनके बच्चे स्कूल नहीं गए, अच्छे पढ़े-लिखे नहीं तो आगे कुछ नहीं कर पाएंगे।
माता पिता के अनुसार उनके बच्चे अच्छे पढ़ लिख गए तो आगे उन्हे अच्छी नौकरी मिल जाएगी जिससे कि उनकी जिंदगी में सुख संपत्ति आ जाएगी।
उपसंहार
टेक्नोलॉजी के इस समय मे बच्चों के बचपन को बचाने का प्रयत्न हमें खुद करना पड़ेगा।
बच्चे अपने जीवन में खेलेंगे कूदेंगे नहीं तो वे छोटी उम्र से ही अनेक बीमारी से ग्रसित हो जाएंगे।
उसका प्रभाव किसे पड़ेगा देश को या परिवार को?
जी हां सोचने वाली बात है। अगर कोई बच्चा किसी बीमारी से ग्रसित है। तो उसका इसके परिवार पर तो असर पड़ेगा ही परंतु कहीं ना कहीं देश पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा क्योंकि आने वाले समय में देश की निंव भी बच्चे ही है।
हम सबको मिलकर इस बात पर मनन करना होगा और उन्हें वापस सेहत व बाहरी खेलो के बारे में बताना होगा।
इसलिए अपने बच्चों के बचपन को खतरे में मत डालो और उन्हें एक सुखद मय जिंदगी जीने को प्रेरित करो।