दहेज पर कविता | Dahej par Kavita hindi me

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दहेज पर कविता
hindi kavita 

दहेज पर कविता

देवे जो बेटी,  धन काहे को देवे,
हो चुका जो होना था , अब काहे को रोवे।।

जो समझे  बेटी को बोझ , 
अब उसे काहे का रोझ ।।

दिया जाता है  जिसे उच्चा दर्जा 
चढ जाता हे उस पर कही रिश्तों का कर्जा।।

इसको जो चाहा, मिला या ना मिला ,किसने देखा
इसका कोई नही लेखा जोखा ।।

हर दुख को  वो सह जाती है
वो घर के सँस्कार निभाती है|

जो दहेज ना कोई दे पाया 
तो लोगो ने उसे ठूकराया ।।

हा बदल रहा हे समय ,वो कल भी आयेगा 
जब अपनी  बहन को , वो ऐसा पायेगा ।।

एक तरफ रखा करो शौहरतो को,
कभी चाय पानी भी  पिलाया करो घर कि औरतो को।।

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक: अशोक कुमार

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