hindi kavita
दहेज पर कविता
देवे जो बेटी, धन काहे को देवे,
हो चुका जो होना था , अब काहे को रोवे।।
जो समझे बेटी को बोझ ,
अब उसे काहे का रोझ ।।
दिया जाता है जिसे उच्चा दर्जा
चढ जाता हे उस पर कही रिश्तों का कर्जा।।
इसको जो चाहा, मिला या ना मिला ,किसने देखा
इसका कोई नही लेखा जोखा ।।
हर दुख को वो सह जाती है
वो घर के सँस्कार निभाती है|
जो दहेज ना कोई दे पाया
तो लोगो ने उसे ठूकराया ।।
हा बदल रहा हे समय ,वो कल भी आयेगा
जब अपनी बहन को , वो ऐसा पायेगा ।।
एक तरफ रखा करो शौहरतो को,
कभी चाय पानी भी पिलाया करो घर कि औरतो को।।
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