जिंदगी कविता – हमने देखी है जिंदगी तड़पते हुए | Jindgi kavita

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Jindgi kavita

जिंदगी कविता – हमने देखी है जिंदगी तड़पते हुए | Jindgi kavita 

हमने देखी है जिंदगी तड़पते हुए
मौत नहीं आती देखकर उसे हंसते हुए I

जिनके घर है डूबे हुए यहाँ अंधेरों में
उन्हे भी देखा रातों में यहाँ जलते हुए I

कितने बेबस कितने लाचार हैं लोग यहां
गम-नसीब है जी रहे गम सहते हुए I

सितम-शी’ आर जमाना नहीं देगा जीने
उन्हें इल्म नही इसका सुना कहते हुए I

दर्द-ए-ग़म बयां करते छुपाकर नजरे
आंसुओं में देखा लफ्ज लफ्ज बहते हुए I

कितनी सदियाँ गई है बीत मुस्कुराने में
आज पहुंचे इस मुकाम पर मरते हुए I

क्यों करे कोई यकीन एक मुसाफिर पर
दो पल रुक कर जायेंगे शाम ढलते हुए I

इस डगर पर सवार भी चला करते है
एक पत्थर हूँ ‘शशि’ उसने कहा चलते हुए I

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक:  राकेश मौर्य

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