चाँद और सूरज पर कविता |
चाँद और सूरज पर कविता
कभी देखती हूँ जब
चाँद और सूरज को,
सोचती हूँ,
तुम कब से हो नीले अम्बर में,
तुमने देखा होगा
महादेव को तपस्या करते हुए,
हिमालय पर,
तुम शिव-माता पार्वती के विवाह के
साक्षी भी बने होगे,
तुमने प्रभु राम का वनवास भी देखा होगा,
तुम राम-रावण युद्ध के भी साक्षी बने होगे,
तुमने वृंदावन में मुरलीधर की
लीलाओं को भी देखा होगा,
तुमने कुरुक्षेत्र में गीता उपदेश को
भी सुना होगा,
तुम महाभारत के प्रचंड युद्ध के
भी साक्षी बने होगे,
तुमने आतताइयों से मनु पुत्रों को
युद्ध करते देखा होगा,
रणभूमि में माँ भारती की रक्षा हेतु
अपने सम्राटों और महाराणाओं को देखा होगा,
तुम तराइन और हल्दीघाटी युद्ध के
साक्षी बने होगे,
सोचती हूँ यदि धवन्यालेखन हो उस नाद का,
तुम्हारे पास,
फिर वही परिस्थितियाँ आ खड़ी हो हमारे साथ,
सत्य, न्याय और धर्म के लिए
मनु संतानों की वीरता और कीर्ति के
भी साक्षी बनोगे तुम!!
कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवयित्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
रचयिता –डॉ मनोरमा सिंह
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Inspiring
आज मनोरमा जी के माध्यम से एक अच्छी कविता पढ़ने को मिली है
रचना दीक्षित
Bs suraj aur chand hi jo sb jante h….din me suraj nazar rkhta aur raat me chand…bhut sundar kavita h
बहुत सुंदर कविता! मन प्रफुल्लित हो गया
Good imagination