गंगा नदी की आत्मकथा। Ganga nadi ki atmakatha

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गंगा नदी की आत्मकथा

आज हम पढ़ने वाले हैं गंगा नदी की आत्मकथा (ganga nadi ki atmakatha in hindi )

यह आत्मकथा हमने सभी विद्यार्थियों class 1 class 2 class 3 class 4 class 5 class 6 class 7 class 8 class 9 class 10th दूसरे सभी विद्यार्थियों के लिए लिखी है।

Ganga nadi ki atmakatha
गंगा नदी की आत्मकथा

गंगा नदी की आत्मकथा। Ganga nadi ki atmakatha in Hindi

मैं गंगा हूं। जो कि एक नदी हु, पर मुझे एक नाम दिया गया है जिसका अपना एक अलग ही महत्त्व है और इस रूप में मुझे जाना भी जाता है। मैं अपनें अंदर पानी समाए हुये हूं। जिसे बहाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती हूं।

मेरा जन्म गंगोत्री हीम, उत्तराखंड से हुआ है। जहां से पानी लेकर में कल कल सी बहती हुयी बंगाल की खाड़ी में जाकर समाप्त होती हूं।

मेरी लंबाई लगभग 2500 किलोमीटर से अधिक है, जो कि एक काफी लंबी दूरी है। इतना लंबा रास्ता तय करते हुए मैं अपने गंतव्य तक पहुंचती हूं। 

उत्तराखंड के गंगोत्री हिमनद से निकलकर सबसे पहले मेरा निर्माण अलकनंदा और भागीरथी मिलकर करती है। 

उसके पश्चात में आगे बढ़ती हूं। यहां से मैं अपने आप को एक बड़ा स्वरूप प्रदान करती हूं। मेरा सबसे ज्यादा फैलाव भारत में ही है।

भारत में मुझे माता का दर्जा प्रदान किया गया है। अपने रास्ते से बहते हुए में भारत के कई बड़े शहरों को जोड़ती हूं। 

विश्व का सबसे बड़ा मैदान तैयार करने में मेरी महत्वपूर्ण भूमिका है। अपने रास्ते से बहते हुए कई सूखे क्षेत्रों को हरा भरा कर देती हूं।

मेरे रास्ते में पड़ने वाले शहरों को भी में कभी पानी की कमी महसूस नहीं होने देती हूं। हमेशा जल की पूर्ति करती हूं। उद्योग से लेकर कृषि क्षेत्र में या अपने सभी प्रकार के घरेलू कार्यों में लोगों को जल प्रदान करती हूं। 

रास्ते में मुझे कई परेशानियाँ भी आती हैं लेकिन इन सबके बावजूद में रुकती नहीं हूं।

कई स्थानों पर मेरे जल का प्रयोग करके उसे गंदा करके मेरे अंदर छोड़ दिया जाता है। जिससे मेरी सुंदरता कम होती जा रही है। 

फिर भी मैं अपने प्राकृतिक तरीके से अपनी स्वच्छता बनाए रखने की कोशिश करती रहती हूं। 

कई जगहों पर बांध बनाकर मुझे रोकने का प्रयास किया जाता है। मेरे ऊपर जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण भी हुआ है।

मेरी सहायता से प्रतिवर्ष लाखों किसान अपनी फसल की पैदावार अच्छी करते हैं। और अच्छी फसल उपजाते हैं। 

लाखों लोगों की आजीविका में मेरा महत्वपूर्ण योगदान है। मछुआरे मेरे जल के अंदर से मछली पकड़ते हैं तथा इन्हें बाजार में बेचकर अपना घर खर्च चलाते हैं।

मैं अपने अंदर हजारों प्रकार के जलीय जीव जंतुओं को या कीड़े मकोड़ों को आश्रय प्रदान करती हूं। मैं अपने अंदर कई जलीय वृक्षों को भी समाए हुये हूं। 

मुझे कभी-कभी बहुत गर्व होता है कि आखिर मुझे इतने प्रकार से लोगों को सेवा प्रदान करने का मौका मिला है।

मेरा भारत के साथ-साथ बांग्लादेश में भी अस्तित्व है। भारत के कई महत्वपूर्ण स्थानों से गुजरने के पश्चात में बंगाल में, बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा(सुंदरवन डेल्टा) बनाने में भी सहायक है।

मैं अपने रास्ते में आने वाले शहर हरिद्वार, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, कानपुरा, इलाहाबाद, पटना, सोनपुर, राजमहल,भतपारा,हल्दिया से होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिलती हूं।

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आशा करते हैं आपका महत्त्वपूर्ण कार्य इस आत्मकथा की सहायता से संपूर्ण हुआ होगा और आपको गंगा नदी की आत्मकथा समझ में आई होगी। यदि आपको लगता है कि आपके साथियों को इसकी आवश्यकता है तो उनके साथ इस ganga nadi ki atmakatha को अवश्य साझा करें।

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