पतली कमरिया
कभी -कभी सोचता हूं,
क्यों करते हैं हम चिंता
किसके लिए रात दिन,
भाग दौड़ कर रहे ,
ज़िंदगी भर हम जिनके लिए,
धाय धाय कर रहे।
हजारों उम्मीद हम पाल रहें
किससे और क्यों ,
हम उम्मीद कर रहे,
करते हैं बेहतर ,
कल के लिए धाय धाय
जिन्हे करना था ,
बेरोजगारी, बेकारी हाय हाय,
वो पतली कमरिया बोले,
हाय हाय कर रहे।
मरीज बिन दवाई के
बच्चें बिन पढ़ाई के
युवा बिना काम के
व्यापारी बिना दाम के
चारों तरफ हाय हाय कर रहें,
जिन्हे करना था,
महंगाई हाय हाय,
जिन्हें करना था,
बेरोजगारी हाय हाय
वो पतली कमरिया,
पर हाय हाय कर रहें।।
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: मलखान सिंह पंथी
मा.शिक्षक
शा.सरदार पटेल उ.मा.विद्यालय करोंद,
भोपाल मध्यप्रदेश।
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