कविता- चांद की आंख के हम नूर हो गये
क्या थे हम? क्या हो गये?,
कहां थे हम कहां हो गये।
ठोकर मारी थी जिसने हमको,
उसके हम आज सिर मोर हो गये।।
लेता नहीं था कभी कोई सुध हमारी,
आज हम उनके चितचोर हो गये।
बात करने से भी चुराते थे कभी आंखें,
उनकी आंखों के आज हम नूर हो गये।।
क्या थे हम? क्या हो गये?,
कहां थे, हम कहां हो गये।
ठोकर मारी थी जिसने हमको,
उसके हम आज सिर मोर हो गये।।
कुछ ही दिनों पहले हमारे ही घर में,
करके हमें फिर से आजाद,वो हमसे दूर हो गये।
करके एक ही दिल के दो टुकड़े,
हमारे अपने वो हमसे दूर हो गये।।
लाख समझाया हमने उनको,
जो पास रहकर हमसे दूर हो गये।
हम निकल गये इतने आगे,
वो जितने हमसे दूर हो गये।।
हमने लहरा दिया है चांद पर झंडा,
वो ज़मीं पर चांद लहराने में, मशगूल हो गये।
हमको जान चुका है जग सारा,
वो खुद को छिपाने में मशगूल हो गये।।
क्या थे हम ?क्या हो गये?,
कहां थे हम कहां हो गये।
ठोकर मारी थी जिसने हमको,
उसके हम आज सिर मोर हो गये।।
हर कोई आज साथ चलना चाहता है हमारे,
जिनके पैरों की कभी हम धूल हो गये।
आजादी हमने लिख दी है चांद पर,
आज हम इतिहास में मशहूर हो गये।।
हर देशवासी चल रहा दिखाकर छाती,
वास्तव में छः से छप्पन इंच हो गये।
घर में बुलाकर आज बढ़ जाती है उनकी शान,
जिनके दरवाजे भी कभी हमसे दूर हो गये।।
चंदा मामा को आज तक पढ़ा था किताबों में,
जिस पर जाने के सपने पूर्ण हो गये।
मंगल पर पहुंचे थे कुछ बरस पहले,
आज चांद की आंख के हम नूर हो गये।।
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: नन्ना कविराहुल भारद्वाज
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