कविता- इस दर्द-ऐ-दिल का हाल | Dard E Dil ka Hal

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इस दर्द-ऐ-दिल का हाल हम किसे बताये

इस दर्द-ऐ-दिल का हाल हम किसे बताये?
था। जो कभी अपना उस पर 
हम हक कैसे जाताये?
चाहते थे। जिसे हम कभी टूट कर 
कहाँ? चले गये 
युँ हमसे रूठकर 
बदलते वक़्त का है। ये दौर 
जो थे। कभी हमारे 
आज उनके दिल मे बसा है। कोई और 
इस नम आँखों को कौन है ?समझाये 
इस दर्द-ऐ-दिल का हाल हम किसे बताये?
था। जो कभी अपना उस पर 
हम हक कैसे जाताये?
मिल जाते है।कभी वो 
हमें अनजान मान बैठे।
कम्बख्त हम आज भी उनसे 
मोहब्बत की उम्मीद लिए बैठे 
इस पागल दिल को कौन? समझाये 
इस दर्द-ऐ-दिल का हाल हम किसे बताये?
था। जो कभी अपना उस पर 
हम हक कैसे जाताये?
हँसता हुँ। कभी अपनी इन नादानी से 
 ये दिल आज भी उसका नाम क्यों? लिए जाये 
इस दर्द-ऐ-दिल का हाल हम किसे बताये?
था। जो कभी अपना उस पर 
हम हक कैसे जाताये?
इस उलझन भरी जिंदगी की 
ये हो गई ये कहानी 
गुम हो गयी मेरी ये जिंदगानी 
चुप है। मन क्यों? हलचल मचाये 
इस दर्द-ऐ-दिल का हाल हम किसे बताये?
था। जो कभी अपना उस पर 
हम हक कैसे जाताये?

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक:  Vikram Bahadur

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