इजहार पर कविता | Pyar ka izahar kavita

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इजहार पर कविता

इजहार पर कविता


कह दूॅ मैं तुझसे वो बात,

जिसे सोचती हूँ हर रात।

तेरी इक मुस्कुराहट ,तेरी कातिल निगाहें, 

जिसके लिए बदल दूँ मैं अपनी राहें।

 तेरी एक आवाज सुनने को रहती बेकरार 

चाहती हूँ होती रहे तेरी मेरी प्यारी तकरार ॥ 

ख्वाईश है कि डूबी रहूँ तेरी ही बातों में, 

नींद भी ना आए मुझे, चाँदनी रातो में ।

 तेरे सिवा कुछ ना सोचे ये दिल मेरा,

 कुछ तो अलग राबता है तेरा मेरा ॥

जब से देखा है तुझे मैंने ,

किसी और की तरफ ना ऊठी मेरी नैनें।

 ऐसा क्या है तुझमें जिससे खीची चली आती हूँ तेरी ओर,

मन कहता है, अब सारी बंजिशे तोड़।

 ना लगता मुझे कि ऐसा कोई और मिलेगा राही,

मेरा दिल भी नहीं देता इस बात की गवाही।।

 मेरा बस रब से यही है फरियाद..

मिले अपने ताल से ताल

 करे अपनी जोड़ी कमाल ..

 इसके लिए-.

समझ ले तू मेरा दिल-ए-हाल !

 समझ ले तू मेरा दिल – ए – हाल !!
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कवियत्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवियत्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

कवियत्री:  Pranci Singh

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