हे मानव | कविता | He Manav

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हे मानव

हे मानव 

कविता – आज के समय की माँग

हे मानव तुम भी उठो और विष का पान करो 
जिस तरह विष पीकर भगवान शिव ने विश्व का कल्याण किया 
उसी तरह तुम भी कुछ कर्म करो 
उठो हे मानव तुम भी विष का पान करो।

इस उथल पुथल भरी जिंदगी से 
फिर से सुख का आह्‌वान करो
हे मानव तुम भी विष का पान करों

भगवान शिव ने तो विष पीया जिससे कार्य आगे बढ़ा
और देवताओं ने अमृत पाया था। 
पर तू ने पेड़ काटे धरती उजाड़ी, 
जल और वायु को दूषित किया 
आखिर किस बात पे तू ललचाया था । 
शिव ने तो उस समय विष पीकर कल्याण किया 
अब तुम भी कुछ कल्याण का काम करों।
हे मानव उठो और तुम भी विष का पान करो ||

यह जानने के बाद भी कि जन्मने, वाली संतान कन्या है 
तूने उसको मारा था या मरवाया था । 
न जाने तूने यह पाप कितनी बार दोहराया है। 
क्या इस पाप का हिसाब भर पायेगा, 
क्या तू इस पाप का पश्चाताप कर पाएगा।
शिव ने तो उस समय विष पीकर कल्याण किया 
अब तुम भी कुछ कल्याण करो |
हे मानव! उठो और तुम भी विष का पान करों ॥

एक तरफ तो तू लाश छूने के बाद बार बार हाथ धोता और नहाता है।
वहीं दूसरी तरफ तू जानवर मारकर खाता है 
वाह रे मानव तूने कैसा व्यक्तित्व अपनाया है
न जाने तूने ऐसे कितना पाप कमाया है ।। 
प्रकृति इस बात की एकमात्र गवाह है 
कि तूने कैसे धीरे धीरे इस संसार में अपना पाँव जमाया है। 
तूने तब से लेकर अब तक अपने कर्मों से कितना, 
पुण्य और कितना पाप कमाया है।
अरे मानव! कुछ अपनी मानवता का भान करो ।
शिव ने तो उस समय विष पीकर कल्याण किया 
अब तुम भी कुछ कल्याण का काम करो।
हे मानव! तुम भी विष का पान करो।। 

खोई हुई सुख-समृद्धि का फिर से आह्‌वान करो । 
हे मानव तुम भी विष का पान करो॥ 

वृद्ध की सेवा करो उनका न अपमान करो।
मानव हो तुम अपनी मानवता का भान करों।
वृद्धाश्रम जिसने बनवाया उसने तो पुण्य कमाया है
पर ध्यान रहे तुमने। 
उसका उपयोग करके ढेरो पाप कमाया है।
इस पाप के बोझ को थोड़ा कम करो, 
मानव हो तो कुछ शर्म करो !! 
सभी वृद्धाश्रम बंद करे, 
वृद्धों की सेवा खुद करो !
भूलकर आधुनिक जीवन अपना पुरानी संस्कृति की सुध करों।
इस उथल पुथल भरी जिंदगी में फिर से सुख का आह्वान करों।

जिस तरह भगवान शिव ने विष पीकर
विश्व का कल्याण किया।
उसी तरह तुम भी कुछ अच्छे कर्म करों।
उठो हे मानव तुम भी विष का पान करो।

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक:  Prashast 

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