हिंदुस्तान कविता – देख रहा हिंदुस्तान है
मेरे जीवन के पीछे मईया देख , कितनो के तो जान है ।
जाने दे मुझको देश की सीमा में, देख रहा हिंदुस्तान है ।।
मुझको न पाकर के दुश्मन, सीमा को तो पार करेगा ।
घात लगा के बैठे रहेगें, पीठ -पीछे फिर वार करेगा ।।
मेरे इन कंधो में मईया, रखा देश का अब मान है ।
जाने दे मुझको देश की सीमा में, देख रहा हिंदुस्तान है ।।
याद करो मां पिता ने तुमसे, एक बात कही थी उस दिन ।
सीमा में लड़ने खातिर, आखिर बार गए थे जिस दिन ।।
समझ लेना तेरा ये बेटा, अब देश के लिए बलिदान है ।
जाने दे मुझको देश की सीमा में, देख रहा हिंदुस्तान है ।।
मेरे जीवन के पीछे मईया देख , कितनो के तो जान है ।
जाने दे मुझको देश की सीमा में, देख रहा हिंदुस्तान है ।|
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: कुलेश्वर जायसवालविधा – गीतसेमरिया,कबीरधाम,छत्तीसगढ़
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