5 हिंदी कविता | best Hindi me Kavita |

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हिंदी कविता | Hindi me Kavita |

इस पोस्ट में हम आपके लिए कुछ हिंदी कविता लेकर आये हैं जो हमारी वेबसाइट से जुड़े कुछ कवि द्वारा लिखी गयी हैं। पढ़ने के बाद इन कविताओं को अपने साथियों को जरूर भेजें। पढ़े हिंदी कविता

हिंदी कविता -दिनकर 

ये धन्य रामधारी सिंह दिनकर थे,
उस समय के कविगण ,इनके किंकर थे।
ये बिहार के सिमरीया के लाल थे ,
ये भारत की मुक्ति हेतु बेहाल थे।
मनरूपा – बाबू रवि सिंह के सुत थे,
विलक्षण प्रतिभा के प्रबुद्ध , अद्भुत थे।
साहित्य नभ में चमकते सितारा थे,
अजर अमर हुए, राष्ट्रकवि न्यारा थे।
ये जनकवि, महाकवि और विश्वकवि थे ,
हिंदी क्षितिज पर तब इकलौता रवि थे।
ये अति निडर,स्पष्टवादी व फक्कड़ थे,
स्वाभिमानी, जीवट वाले अक्खड़ थे।
कवि ,लेखक, पत्रकार , निबन्धकार थे,
देशभक्ति व वीर रस के हुंकार थे।
ये ओज,जोश व आक्रोश के कवि थे ,
ये यथा नाम तथा गुण , मानो रवि थे ।
नरेंद्र सिंह

हिंदी कविता – प्रकृति से प्रेम

यूं तो हैं ये मूक सभी पर इनसे है संसार हरा,
नदियाँ झरने पशु पक्षी और वृक्षों से है यह धरा l
वन महोत्सव छठ और ईतु प्रकृति इनकी शान
है
ऋतुएँ ना हों तो फिर किसमें, बोलो किसमें प्राण हैं ll

धूप हवा पानी और धरती इस प्रकृति के रंग सभी
पर्वत ऊँचे घाटी गहरी मोहित इन पर हम सभी l
स्वच्छ हवाएँ चाहत सबकी वृक्ष लगाए कोई ना
वन-विनाश के मृत्युजाल से बच पायेगा कोई ना ll

साँस लेने जब हवा ना होगी ज़हर निगलना ही होगा
ऊष्ण धरा की तपन देख गिरिराज पिघलना ही होगा l
जैसे अपने तन की सोचें मन का भी हम ध्यान रखें
प्रकृति के इन सब रंगों का प्रेम सहित सम्मान रखें ll

ना हों गर ये पक्षी नभ में क्षितिज कौन दिखलाएगा
पेड़ पौधे और जंगल न हों जीव-जंतु कहाँ जाएगा l
प्रकृति से है मानव जीवन बिन इसके सब मिथ्या है
प्रकृति का सम्मान ना करना ख़ुद ही ख़ुद की हत्या है ll
जीव धरा की अमुल धरोहर प्रकृति इनकी माता है
पीड़ित त्रस्त विषादि मन को प्रकृति प्रेम सुहाता है l
बस प्रकृति प्रेम सुहाता है ,बस प्रकृति प्रेम सुहाता है ll

आत्मीय कविता के अंत में, हिंदी कविता
कविता का रचनाकार : जयविजय

हिंदी कविता – बेटियो का खुला आसमां

सुबह की चमचमाती धूप फैल जाती है
यू ही बेटियां आसमा की रोशनी कहलाती हैं
खैर चंद मुल्कों में बेटियां रौंद दी जाती हैं
जीवन देने वाली की, जिंदगी डॉक्टर तक सिमट जाती हैं,
मोमबत्ती वालो की शांति, क्या शांति कहलाती है
जहां चंद मुल्कों में बेटियां रौंद दी जाती है,

काल के कपाल पर, लिख जाती है बेटियां,
सारा आसमान समेट जाती है बेटियां,
उन मां बापू से पूछना, जिनकी उम्र भर की कमाई होती है बेटियां,

क्या पढ़कर खुद के लिए नहीं लड़ पाती हैं बेटियां,
मोमबत्ती की तरह पिघल जाती हैं बेटियां,
उन बेटियो के क्रोध की अग्नि, अगर धधक जाती
उन कायरो को मिट्टी में कुचल शून्य कर पाती,

भारत की बेटियों को अक्षय पूर्ण बनना होगा
फिर से सशक्त बन खुले आसमा में बेटियों को निकलना होगा….

आपका आपका
गजेंद्र शर्मा

हिंदी कविता -बच्चों के संग बादल

रिमझिम रिमझिम आया बादल
पानी भी संग लाया बादल
धान बिठाने में लगा है जोर
क्योंकि पानी का लगा है शोर
बच्चों में हरियाली आई
सुंदर संग सहेली लाई
बच्चों ने है मनोरंजन मनाया
बादल ने हैं उन्हें नहलाया
ठिठुर-ठिठुर कर कांपने लगे
कान पड़कर भागने लगे
सहेलियों के संग आने लगे
पके आम फिर खाने लगे
लड़ झगड़ रहे हैं बगीचे में
फिर घर को वापस आने लगे
क्योंकि बादल धीरे-धीरे जाने लगे।
और वे खिलखिलाने लगे।।

लेखक- विवेक कुमार विवेक

हिंदी कविता – एक सुत्र मे बंधे

जब 15 अगस्त आये
प्यारा भारत का तिरंगा लहराये,
ऋषि अरबिंदो, काजी नजरुल ईसलाम
और नेताजी सबके दिलो मे भाये ।

स्वामी विवेकानन्द की शिष्या
भगिनी निवेदिता
मिलने अरबिंदो से बड़ौदा मे आई,
कहा आप कोलकाता जाइये
स्वाधीनता के लिये कुछ कीजिये,
1906 मे अरबिंदो कोलकाता आये
अरबिंदो देश को आजाद कराने मे जुट गये
मई 1908 को पुलिस आई
अरबिंदोके घर पर,
लेटे हुये थे वो फर्श पर
पुलिस ने पाया , कुछ पत्र और मिट्टी
पुछा क्या है? अरबिंदो बोले पुलिस से
यह है दक्षिणेश्वर की मिट्टी,
मन मे बोले विश्वास है इसमे है वरदान
श्रीरामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद का,
पुलिस जेल ले गई, पर वहाँ करते ध्यान
विवेकानंद आते ध्यान मे मार्गदर्शन कराते ,
भगवान श्री कृष्ण हर जगह सामने दिखते
दिखते पेड़ो मे, अदालत के मेज मे,
न्यायधीश के चेहरे मे, श्री कृष्ण मन मे कहते
मत करो चिन्ता , तुम्हे मेरा काम करना
है, पौन्डीचेरी मे ।

पुत्र बुलबुल के शोक मे
1930 मे
काजी नजरुल ईसलाम
पागल जैसे हुये,
कुछ रचना करने चाहते
पर रहते मन मे खोये ,
राह ढुड़ने के लिये लालगोला गये
योगी वरदाचरन मजुमदार के पास
बेटे बुलबुल के आत्मा को
योगी वरदाचरन मजुमदार जी
ने उन्हे दिखाया
शोक कम हुआ ,
नजरुल शान्त हुये,
आशीर्वाद मिला वरदाचरन जी का,
“अरुणोकान्ति के गो तुमि योगी भिखारी”
गुरु को स्मरण कर गाया,
मा काली , भारत माता, और श्री कृष्ण के
अनेक गानो की रचना की ,
कविता , गानो को लोगो ने सुना
लोगो मे जोरदार जोश आया ,
लाख लाख देशभक्तो ने उनका गाना गाया ।

1938 के अकूटुबर मे
नेताजी दक्षिणेश्वर गये
मा आनन्दमयी से जाना
क्या एक साथ सम्भव है
स्वदेश प्रेम और भगवान को पाना?
मा ने अभाव और स्वभाव
का फर्क समझाया,
अखण्ड आनन्द, ध्यान
और देश सेवा के बारे मे बताया ।
1939 के जुन मे
नेताजी गये लालगोला
योगी वरदाचरन मजुमदार जी से
क्रिया योग की दीक्षा ली
और नये जोश से पुरे विश्वव मे
जापान, जर्मनी, सिंगापुर मे,
शुरु कर दिया स्वतन्त्रता संग्राम
15 अगस्त 1947 को
अंग्रेज शासन का हुआ विराम
सच है , सत्य सनातन और 15 अगस्त
है एक सुत्र मे बंधे ।

सुबीर कुमार भट्टाचारजी

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