हिंदी कविता – इंसान बन गया हैवान

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आजकल जो लोग महिलाओं को प्रेमी बनकर उनकी भावनाओं के साथ खेल रहे हैं और उनके ऊपर अत्याचार  कर रहे है। प्रेमी का तो क्या उनको तो इंसान तक होने का हक नहीं है और न ही इस समाज में जीने का हक है। उस समाज की बर्बादी होती है जिसमे ऐसे लोग रहते है । उनकी हैवानियत पर इंसानियत शर्मसार है , यह कविता उसी भावना को लेकर लिखी गई हैं।

हिंदी कविता – इंसान बन गया हैवान। 


हिंदी कविता – इंसान बन गया हैवान

आजकल बदल गई प्रेम की परिभाषा
हवस बन गई प्रेम की परिभाषा
हाथ लगी उससे केवल निराशा
बदल गई प्रेम की परिभाषा

जूठे वादों पर सिमट गया प्रेम
जब साथ चलने की आई बारी
पीछे हट गया वही प्रेम
धोखे को दिया  प्रेम का नाम ये

लो आया कैसा दौर नया ये
प्रेम के नाम पर छल किया तूने
जिसने  किया प्रेम उसी पर
कैसे किया हर बार अत्याचार तूने

क्या उसकी तड़पती चीखो से
फटा नहीं तेरा कलेजा रे
कैसा निर्दयी बन गया है तू
जिसने किया विश्वास
उस के जीवन को कर दिया त्रास
कर दिया उसका जीवन नाश
क्यों नहीं कांपे तेरे वो हाथ
जिससे तूने किए टुकड़े लाख
क्या बीती होगी उस मां पर
क्या गुजरी उस पिता पर
जब अपनी फूल सी कोमल कली को
देखा होगा ऐसे रूप को 
सोच कर ही कांप जाए रूह जिनकी
क्या रही ना  याद तुझको उनकी कभी
इंसान क्या तू रहा जानवर भी नहीं

ऐसे पागल को जीने का अधिकार नहीं
ना उसको मिले सम्मान कहीं
मिले उसे वो सजा मेरे दोस्त
कभी करे ना दूजा काम कोई ऐसा
मिले सभी को सीख ही ऐसी
कि प्रेम का करे वो सम्मान हमेशा

प्रेम तो अंधकार में है आशा
हाथ पकड़ कर जीवन भर
जो निभाए साथ वह आस है प्रेम
एक अनंत श्वास है प्रेम
मत कर स्वार्थ से  कभी प्रेम
ना कर उस ईश्वर की नेमत को बेपर्दा
भूल मत इसी ने किया तुझको ज़िंदा
कर सम्मान किसी के प्रेम का
खुद बन जा सम्मान किसी के प्रेम का
हवस को भूल बदल प्रेम की परिभाषा
अरे नादान परिंदे सर झुका कर
बढ़ा मान किसी का , बना मान किसी का
प्रेम ही है ईश्वर की परिभाषा
यही है तेरे विश्वास की परिभाषा

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक:  संतोष राव 

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