सड़क पर कविता। Sadhak Par Kavita – सड़के सोती कब है?

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Sadhak Par Kavita
सड़क पर कविता

सड़क पर कविता। Sadhak Par Kavita – सड़के सोती कब है?

न जाने सड़के सोती कब होंगी,
दिन- रात तो दौड़ती ही रहती है,
मानो, सबको गंतव्य तक पहुंचाने का,
ज़िम्मा लेकर बैठी हों………..।
क्या आपको पता है……..?
कि आख़िर ये सड़के सोती कब है..??

आज मैंने सड़कों को सोते तो नहीं देखा,
हां!! लेकिन थोड़ी शांत, थोड़ी अकेली होकर,
झपकियां लेते ज़रूर देखा…….।
शायद, सोने की कोशिश तो कर रही थी…,
लेकिन, जगने की आदी जो हो गई है न…,
तो , चाह कर भी सो नहीं पा रही थी…..,
क्या आपको पता है………?
कि आख़िर ये सड़के सोती कब है……??
खुद को सपाट करके , बगैर कोई जांच- पड़ताल किए,
रात का अंधेरा हो या भोर का उजाला हों……,
चोर की चोरी हों या भूखे की रोटी हों……..,
बिखरे हुए अकेले आदमी के आंसू हों….,
या जीते हुए की चहकती खुशी….,
सबको बड़े ही करीब से देखती है ये, सड़के…!!
मानो, दिन-रात इन्हीं का सहारा बनने के लिए जागती हों…..,
क्या आपको पता है……..?
कि आख़िर ये सड़के सोती कब है…….??
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कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

कवयित्री: जूही कुमारी

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