लड़ाई पर कविता – जंग अभी छिड़ी हुई है
जंग अभी छिड़ी हुई है
यह कैसी जंग है
पता नहीं
लेकिन दो देश से ज्यादा
आपस में जंग कर रहे हैं
और नजर आते हैं
गोला बारूद उड़ता हुआ दुआ
मरते हुए आदमी
पता नहीं क्यों मारते हैं
क्या जलन है
जंग करो
भूख से लड़ने की
ताकि भूखा ना रहे
जंग करो बेरोजगारी से
ताकि कोई बेरोजगार ना हो
जंग करो बेईमानी से
ताकि कोई बेईमान ना हो
लेकिन लड़ते रहते हैं
मालूम नहीं किस लिए
क्या आपको पता है
कितने आदमी बेघर हुए
कितनी औरत विधवा हुई
कितनी बहनों के भाई गए
कितनी बहन भाइयों के पिता ग्रे
कुछ सूझ नहीं रहा
क्या बताएं आपको
आखिर जंग है तो किसकी
इस जंग में
गोलिया बारूद
तलवार भाला
यह सब जीत जाएंगे
लेकिन आदमी हार जाएगा
क्या आपने कभी सोचा है
जरा गौर करें ।
यह सब जीत जाएंगे
लेकिन आदमी हार जाएगा
लेकिन आदमी हार जाएगा…
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।रचनाकार – खान मनजीत भावड़िया मजीदगांव भावड तह गोहाना जिला सोनीपत हरियाणा
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