लड़की का दुःख कविता – जुर्म बस इतना था मेरा | Ladhki ka Dukh kavita

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Ladhki ka Dukh kavita
लड़की का दुःख कविता 

लड़की का दुःख कविता – जुर्म बस इतना था मेरा

जुर्म बस इतना था मेरा,लड़की का जीवन पाई थी।
वर्किंग गर्ल कि पदवी लेकर, खुशियों का ख्वाब सजाई थी।

अनजान थी इस कलयुग के भेद से, जब रात को लौट के आई थी।
दरिंदो के भीड़ में मैं एक, इंसान फंस आई थी।
रहम नहीं था उनको मुझपे,कुछ भी समझ न पाई थी।
अपनी इस हालत पे मैंने ,कितनी गुहार लगाई थी।
अब्र–धरा बीरान थे सारे, घिस–घिस कर दूर जब आई थी।
खाल उतर रक्तो में बह गए,और सांसे रुक आई थी।
बदहोशी के हाल पे ऐसे, बाप–बाप चिल्लाई थी।
खंड–खंड अंगो को करके,टुकड़ों में जान गंवाई थी।
किस जन्म के द्वेष की सजा,इतनी निर्मम पाई थी।
हे ईश्वर ये मुझपे तूने,कैसी तीर चलाई थी।
जुर्म बस इतना था मेरा मेरी,लड़की का जीवन पाई थी।
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक: Anand Kushwaha

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