मेरी बात सुन रही हो तुम कविता | Meri bat sun rahi ho tum kavita
एक इल्म है तुम्हारी मोहब्बत मुझको
एक नींद में मुकम्मल हो रही हो तुम
तुमसे कोई हवा जैसा जरूर ताल्लुक है
यही कहीं हो मेरी बात सुन रही हो तुम
मेरा तुमसे एक साये की तरह रिश्ता है
बेल की तरह पेड़ से लिपट रही हो तुम
आईने ने बताया है कि सिसक रही हो तुम
एक शहर से फिर उसी गाँव लौट आई हो
मेरी कलाई पकड़ के झिझक रही हो तुम
एक फूल फूल है जिसमे कोई खुशबू नहीं है
ये किस फिजूल के सांचे मे ढल रही हो तुम
सजदे अपनी जगह है कुछ अपना ख्याल कर
तेज धूप है और नंगे पांव चल रही हो तुम
मै ठहरे हुए बर्तन का कैदी हुआ पानी हूँ
किसी के होंठ की प्यास बन रही हो तुम
————
कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: आशीष माधव
इस कविता के बारे में अपने विचार comment करके हमें ज़रूर बताएं और अपने साथियों तक इसे अवश्य पहुंचाए ।
और हिंदी अंश को विजिट करते रहें।
_________________
अपनी कविता प्रकाशित करवाएं
Mail us on – Hindiansh@gmail.com