भारतीय किसान पर कविता |
भारतीय किसान पर कविता | Kisan Par Kavita | Poem on Farmer in Hindi
जो है चीरत धरती को,
अन्न फिर उगाता है।
रहता है जो खुद भूखा,
दूसरों का पेट भरता है।
वो किसान होता है।
जो है पहनता धूप को,
सब को छांव में रहने देता है।
बदल लेता है जो रंग शरीर का,
दूसरों को निखारता है।
वो किसान होता है।
जो है खुद नंगे पांव ,
हमे मखमल की चप्पलें पहनवाता है।
जो है रगड़ता एड़ी को पत्थरों पर,
हमे गद्दों पर खड़ा करवाता है।
वो किसान होता है।
जो हर मौसम को सह कर ,
हमे खुश रखता है।
जो बिछाता है घास का बिस्तर,
हमे रेशमी गद्दों पर सोने देता है।
वो किसान होता है।
जो है रखे जीवत मानव को,
प्रकृति का जो प्रेमी है।
कर्मयोगी है वो महान,
ईश्वर का जो अवतारी है।
वो किसान होता है।
समानता की है जो मूरत ,
हितेषी हर प्रेमी का वो है।
बांटता है सब को खुशियां,
परिवार सबको अपना समझता है।
वो किसान होता है।
जो है रहता खुद झोपड़ी में,
हमे बंगले में रहने देता है।
जो है करता खुद परिश्रम ,
हमे फल प्राप्ति करवाता है।
वो किसान होता है।
खपा दिया है जिसने खुद का शरीर,
दूसरों के शरीर को रत्नी बनाने में।
देता है जो सबको प्रेरणा ,
बनो तुम सब भी कर्मवीर ।
वो किसान होता है ।
जो है खाता खुद रूखी – सुखी ,
हमें ताज़ी रोटी खिलाता है।
जो है सहता प्रकोप पृथ्वी का,
हमें सुरक्षित रखता है।
वो किसान होता है ।
प्यारी है जिसे माटी अपनी,
समर्पण है तन मन धन जिसका।
होता है जो धरा का स्वामी,
अन्नदाता वो कहलाता है।
वो किसान होता है।
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: अनुराग उपाध्याय ।
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