Hindi kavita |
बहाने बनाकर कहाँ जा रहे हो
बहाने बनाकर कहाँ जा रहे हो
बता दो हमें तुम जहां जा रहे हो I
चलोगे अकेले अगर भीड़ में जो
कहेगा जमाना ये कर क्या रहे हो I
जरा ये बता दो छुपाओ न हमसे
खता क्या हुई जो सितम ढा रहे हो I
सितारों जमी पर निगाहें बिछा दो
मिलो तो सनम से कहां जा रहे हो I
दिये राह में जल उठे अब तुम्हारे
किधर से उजाले बिखरा रहे हो I
दीवानों जरा देख लो ये नजारा
शरम से जमी में गड़े जा रहे हो I
पत्थर से लगा दिल भटकता फिरे है
लुटा कर चले सब कहाँ जा रहे हो I
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: राकेश मौर्य
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