पतंग किताब एक सम्मान कविता। Patang kitab ek samman Kavita

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पतंग किताब एक सम्मान


पतंग किताब एक सम्मान कविता

पतंग किताब की डोरी एक सामान
छूते हैं हम आसमान

पतंग कहता मुझे डर नहीं
कि मैं ख़ाक में मिल जाऊं
सबसे पहले आसमान छू कर आऊं
मिट्टी में मिल जाऊं कोई गम नहीं
हम किसी से भी कम नहीं

पतंग किताब की डोरी एक सामान
छूते हैं हम आसमान

किताब कहता हम वो कुंजी हैं
जो किसी की भी किस्मत खोल दें
आज हमारा मोल नहीं
लेकिन हम दुनियां को तोल दें
मुझे चिंता नहीं इस बात की
मैं रद्दी बन जाऊं
पर मैं दुनियां से आगे निकल कर दिखलाऊं 

पतंग किताब की डोरी एक सामान
छूते हैं हम आसमान

पतंग जब उड़ता है आसमान की ऊंचाई में 
गिरने का भय नहीं रहता उसे जमीन की गहराई में
वो जनता है हम हारेंगे जरूर
पर अपनी कोशिश में रखते हैं इतना गुरुर
की जमाना देख हमारी उड़ान बाओखलाएं
हम अपनी जीत का साधन लेकर जमीं पे आएं

पतंग किताब की डोरी एक सामान
छूते हैं हम आसमान

किताब महान प्रचलित तो नहीं है
हां इसके ज्ञान से लोग प्रचलित हो जाते हैं
ये इंसान की तरह बोलती तो नहीं है
पर इंसान के अंदर इंसानियत भर देती है
इसका कहना है कठिन राहों को आसान कर जाना है
आज नही तो कल अपनी मंजिल पर आना है

पतंग किताब की डोरी एक सामान
छूते हैं हम आसमान 

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक:  Kuldeep Kumar Diwakar

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