Nazm
Nazm |
Nazm 1
तेरी याद आई ना कभी तु आई,
बाद पता चला आई है मेरी परछाई।
इन हुस्न के दीवानों का कोई हुस्न छीन लेगा,
यह मैं नहीं कहता पूरा जहां कहता है।
तेरे जिस्म में जिसका भी खून दौड़ता है,
तू इतना भागता है जरूर तेरे अब्बा फौज में है।
जिस्म से आने वाली बू साफ कहती है,
अब मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
सामने खड़े लोग मुझसे सवाल पूछते हैं,
जय हिंदुस्तान पहले वाला अब नहीं रहा।
खान मनजीत यह कैसा दौर आ गया,
भाई भाई से जुदा हो गया।
Nazm 2
आजि़र हूं मैं उजाड़ मत ना,
तु मुझे पर इज़बार मत कर ।
इज़तदाह करता हूं मैं हर रोज़,
तू मुझ से अज़र मत कर ।
मैं मुफलिस हूं फिर भी इज़तबा हूं मैं,
तू मुझे गिराने की कोशिश मत कर ।
आपका अबवाब आसाईस के लिए खुले,
तू मुझे भी आशुफ़ता मत कर ।
तेरी पोशाक जरूर अजलत है,
तू उस पर इस्लाम की कोशिश मत कर।
मेरी आरज़ू मैं आसासामंद बन जाऊं,
तू मुझे कभी गुलाम मत कर ।
मेरी आश्ती आपसदारी रहे सदा ,
तू मुझे अजल रसीदह मत कर ।
खान मनजीत नहीं चाहता अज़ल गिरफ्त में,
तुम मुझे हमेशा बेगाना मत कर ।
आजि़र-मजदूर
उजाड़-बर्बाद
अज़र-बदला
इज़बार-दबाव
इज़तदाह-संघर्ष
मुफलिस-गरीब
इज़तबा-पसंदीदा
अज़लत-चमकदार
इब्हाम-घमंड, भ्रम
अबवाब-दरवाजा
आसाईस-सुख
आशुफ़्ता-अस्त व्यस्त
आरज़ू-तमन्ना ,इच्छा
आसासामंद धनी ,पूंजीपति, दौलतमंद
आश्ती-दोस्त
आपसदारी-भाईचारा
अज़ल रसीदह-मृत्यु
अज़ल-मृत्यु
कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
रचनाकार – खान मनजीत भावड़िया मजीद
गांव भावड तह गोहाना जिला सोनीपत हरियाणा