धन पर कविता- रंग बिरंगी नोटों की हरियाली | Dhan par kavita

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धन पर कविता- रंग बिरंगी नोटों की हरियाली

रंग बिरंगी नोटों की हरियाली कविता 

रंग बिरंगी नोटों की हरियाली
कम ज्यादा रहता भरा सबकी थाली
भाग रही सारी दुनियाँ इसके पीछे
हो जिसके पास उसकी रोज दिवाली

पैसे रुपये नाम से सब तो जाने
ऊँच नीच के भेद न कोई माने
जितना जिसके पास खीचा उतना जाए
मर जाये गर पास नोट हो जाली
रंग बिरंगी नोटों ……….

ऐसे तो होते हमने अक्सर देखा
हाथों में होती है किस्मत की रेखा
ये जो कहती सारी दुनियाँ है सुनती
सुख दुःख में सबके काम आनेवाली
रंग बिरंगी नोटों ……….

मै नहीं सारी दुनियाँ ये कहती है
गर हो ज्यादा उलटी गंगा बहती है
सोच समझकर इसका इस्तेमाल करे
वरना कर दे घर ,बैंक ,जेब खाली
रंग बिरंगी नोटों ……….

इसका तो जीवन में बहुत जरुरी है
इसके बिन ज़िन्दगी अधूरी है
मंदिर छोड़ पुजारी ,मठ छोड़ संत
सबकी है जरुरत शुरू हो या अंत
पूजे सब लोग महिमा है निराली
रंग बिरंगी नोटों ……….

प्रभु स्वीकार करे प्रणाम अपना
कृपा दृष्टी से करे पूरा सपना
एक से करोड़, न हो कोई सवाली
सबके घर पके पुलाव खयाली
रंग बिरंगी नोटों ……….
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक:  राकेश मौर्य

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