लिखने की बात तो है नहीं,
फिर भी में तुम पर लिखना चाहूंगा
रोज बिखरे तेरी जुल्फे,
में उन जुल्फो को सवेरना चाहूंगा।
और सुना है तेरे दिल के पन्ने कोरे हैं,
में उन्हें आपने हातो से सजाना चाहूंगा।
और तुम इश्क की राह में फुक के रखती हो कदम,
में उन राहो में कदमों के नीचे की ज़मीन बनना चाहूंगा।
और ये लोग तुम्हें जिस नज़र से देखते हैं,
में उन्हें तुम्हे देखने का नज़रिया बदलना चाहूंगा ।
लोग समंदर कि बात करते है,
फिर भी में तुम्हारी आंखों में डूबना चाहूंगा।
लिखने की बात तो है नहीं,
फिर भी में तुम पर लिखना चाहूंगा।
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है
कवि: Harshad Vijayrao Sitapkar
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