जीवन का अभिशाप कविता – अशिक्षा की बेड़ियां। Jeewan Ka Abhishap Kavita

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जीवन का अभिशाप कविता

अंधकार कि तोड़ बेड़ियां में ,
उजयाला पाऊं।
मेरा भी तो मन कहता है, 
विद्या मंदिर जाऊ ।।
मात पिता को नमन करूं,
गुरुदेव को शीश नवाऊं।।
ईश्वर का आशीष रहें ,
कभी राह भटक न पाऊं
अपना भी कल्याण करूं,
ओरो को जीना शिखलाऊ
जिस पथ पर भी क़दम रखूं,
जीवन को सफल बना जाऊं।।
अंधकार की तोड़ बेड़ियां,
 में उज्याला पाऊं, 
मेरा भी तो मन कहता है ,
विद्या मंदिर जाऊ
अपना भी कल्याण करूं ,
औरों को जीना सिखलाऊ।।
मैने जीवन में देखा है,
बड़ो में ही संस्कार नहीं,
बच्चों से क्या उम्मीद करूं ।
ईश्वर सबको को सद्बुद्धि दे ,
जीवन का कल्याण करूं।।

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक: मलखान सिंह पंथी 

 मा.शिक्षक 
 शा.सरदार पटेल उ.मा.विद्यालय करोंद, 
भोपाल मध्यप्रदेश।

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