जिंदगी से हार कर सोचा किये कविता
जिंदगी से हार कर सोचा किये
पास क्या था हम जिसे खोने लगे I
मय नहीं पीनी किया वादा कभी
रोज अब हम मयकश होने लगे I
राह में कोई गुन गुना रहा
दास्ताँ सुन के सभी रोने लगे I
चाँद में है दाग़ था जब से सुना
रात आँखे खोलकर सोने लगे I
जाम समंदर ज्यू खतम होने लगा
घूँट घूँट हम भी मय पीने लगे I
बिन देखे चैन जिनको था नहीं
हम उन्हें अब दोस्त पुराने लगे I
आँख अपनी खुद बनी जब आईना
शक्ल अपनी देख घबराने लगे I
जख्म उनके ‘ शशि ‘ बयाँ कैसे कर
अब लहू से चेहरा धोने लगे I
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: राकेश मौर्य
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