गुरु पर कविता | Guru Par Kavita in Hindi

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गुरु पर कविता
गुरु पर कविता


गुरुवर प्रेम पर कविता 

ऐसा हमे बना दो गुरूवर! साहस कभी नही चुकने पाए..।
कहीं सघन- शीतल अमराई देख, मेरा मन नहीं ललचाएँ.।
ऐसा भरना भाव कि हिम्मत कभी न टूटने पाए……।
हम निर्बलों के बल बने, हम निर्धनों के कौर बन जाए ….।
हो उन्नति के शीर्ष पर, माँ भारती का शौर्य के बन जाएँ…। 
ऐसा हमें बना दो गुरुवर ! सच्चे शिष्य हम कहलाएँ,…।

सबका भला हमेशा चाहे, मिटा सकें दुखियों की आहे । 
आगे कदम बढ़ाते जायें, कभी न पीछे हटने पाये ।
चाँद और सुरज की भाँति, जग में पहचान बनाएँ…।
गुरुवर! देना ऐसा वरदान, पढ़-लिखकर बन जाएं महान..।
एक पल भी आत्मबल अदम्य न घटने पायें …।
ऐसा हमें बना दो गुरुवर! सच्चे शिष्य हम कहलाएँ….।

शिक्षा अब धंधा बना, शिक्षा सदन दुकान ..।
धर्म – कर्म सब बिक गया, बिकता है अब ज्ञान..।
ऐसा हमे बनाना गुरुवर, विद्या को न तोले हम…।
विद्याधन अनमोल है ना है इसका मोल,रहे सदा ये ज्ञान..।
यही कामना बस है मेरी करूं में भलाई..।
गीरे को गले से लगाउँ, न आये कभी दिल में बुराई…।  
ऐसा मुझे बना दो गुरुवर ! बिनोद भाव भगती जगाती रहूं।

ॐ शान्ति: || शान्ति: || शान्तिः ||

ॐ चैतन्यं शाश्वतं शान्तं, व्योमातीतं निरंजनम् । नादबिंदुकलातीतं, तस्मै श्री गुरवे नमः ||

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कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवयित्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

कवयित्री: Jaya Priya

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