गाँव की यादें पर कविता | गाँव पर कविता | Gaon ki Yade Kavita

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गाँव पर कविता
गाँव की यादें पर कविता

गाँव की यादें पर कविता

जहाँ नीम का पेड़, 
खेतों में सरसो का ढेर 
जहां गाय, भैंस और बकरी का ढेर 
दुखिया की शादी में सारा 
गांव बन जाता था कुबेर
वो गांव है मेरा…..!

जहाँ रास्ते कच्चे थे, 
थोड़े उच्चे थे, थोड़े नीचे थे 
और कुछ पक्के थे 
क्या फर्क पड़ता था, 
हम लोगों को बचपन के पंख लगे थे

ज़रूर पढ़े – गाँव पर कविता

वो गांव है मेरा….!

लोग मिलजुल कर रहते थे, 
एक दूजे का परिहास जमकर करते थे 
जहाँ क्लेश-रहित था वातावरण, 
न था हवाओं में प्रदूषण 
वो गांव है मेरा… |

जहाँ धर्म-जाति, 
रीति-रिवाज था, 
जहाँ आधुनिकता नहीं, 
परम्पराओं का समाज था  
ना कोई भूखा सोता था, 
भा भूखी गौ माता थी
वो गांव है मेरा…।

जहाँ नहरों का कल-कल पानी था, 
दादी नानी की थी कहानी थी
जहाँ शुद्ध, पावन समीर था, 
जहाँ लोगों का बिकता नहीं जमीर था 
भैंस के दूध की गाढ़ी छाछ थी, 
नीम के पेड़ की गाढ़ी छाँव थी 
चिड़ियो का गुंजन मीठा गीत सुनाता था, 
बच्चों की किलकारी से मन पुलकित हो जाता था।
वो गांव है मेरा…।

दादी-दादी को बहकाते थे,
भरे डब्बे का बिस्कुट खा जाते थे 
मिट्टी का बर्तन कुम्हार बनाते थे, 
देश के पेट किसान भर जाते थे
वो गांव है मेरा….।

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कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

कवयित्री: Jaya Priya

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