गलत निशाने कविता | Galat Nishane kavita

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galat nishane kavita


गलत निशाने कविता | Galat Nishane kavita

शाख दर शाख पेड़ पर चढ़ाते है लोग 
बहुत ऊंचे से नीचे को गिराते है लोग 

उकता गया होता है मन निहार के जभी 
आईने पर बहुत पत्थर चलाते हैं लोग 

बा ख़बर बचाए रहना रिश्तों की डोर 
चिंगारी से बड़ी आग लगाते है लोग

खुद को साबित करना पड़ता है उम्र भर
कदम कदम पे यहां आजमाते है लोग

आवाज कहीं होती है बैठा कहीं और 
गलत निशाने पे तीर चलाते है लोग 

जीतने का जश्न होश नहीं रखता यारों
हार जाने के पे बहुत पछताते है लोग 

भंवरे उड़ाते रहते है फूल की खुशबू
तितलियों को गलत बताते है लोग 

आंसुओ में नहाना ही नहाना है अब 
बारिशों में बहुत कम नहाते है लोग

सच खतरे में है अब सच मे जाना 
झूठ की कसमें बहुत खाते है लोग 

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक: आशीष माधव 

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