खुद पर कविता- खुद को समझो | Khud par kavita

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खुद पर कविता- खुद को समझो
खुद पर कविता

खुद पर कविता- खुद को समझो

खुद को समझो खुद को जानो
खुद को बस पहचान लो तुम तेरा तुझसा अच्छा साथी मिल ना पायेगा जीवन भर,,,

जब तूफान कोई आन पड़ेगा,
छोड़ जाएँगे सब पल भर में

मतलब सी भरी इस दुनिया में
रिश्ते टूट जाते है क्षण भर में,,,

खुद को समझो खुद को जानो
खुद को बस पहचान लो तुम,,,,,,

छोङ किसी के पीछे जाना
निस्वार्थ भावना से सबसे प्यार करो

नाकर उम्मीद,,, समझेगा कोई
ना समझाने में खुद का वक़्त ऐसे तुम बर्बाद करो,,

ना करो प्यार की उम्मीद किसी से “” बस निस्वार्थ भाव से तुम अपना काम करो,,
खुद को समझ

खुद को जानो
खुद को तुम कामयाब करो

छोड़ छाड़
किसी और के सामने खुद को साबित करना,,

खुद को बस निखार लो
खुद को बस निखार लो

खुद को तुम पहचान लो
खुद को तुम पहचान लो

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक:  Nidhi Mishra

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