क्या तुम मुझे याद करोगे
क्या तुम मुझे याद करोगे,
कभी मिलेंगे किसी मोड़ पर,
तो मुझसे बात करोगे ।
क्या तुम मुझे याद करोगे ।
मैं जानता हूँ तुम लाखो में एक हो,
कुदरत का बनाया तुम करिश्मा नेक हो
जब भटका मन राहों से तो
डांट के समझाया तुमने ।
मेरे जख्मों की दवा बन
दोस्ती का हर फर्ज निभाया तुमने ।
जब कहे मेरा दिल तुझसे
कभी मिलना हो तो मुलाकात करोगे,
क्या तुम मुझे याद करोगे ।
मैं जानता नही मेरी आदतें कैसी है ,
पर मुझे लगता है
तेरी चाहत अब भी वैसी है ।
जब भी मैं रूठ जाता था
तुम मुझे मना लेती थी ।
अपने मीठी मीठी बातों से
तुम मुझे हंसा देती थी ।
जब मैं निष्क्रिय पड़ जाऊँ
तो मुझसे सवालात करोगे
क्या तुम मुझे याद करोगे ।
हमारी दोस्ती कितनी निराली थी न
बात बात पे झगड़ जाते थे
एक दूसरे को झूठा ठहराते थे
न कोई गिला न कोई शिकवा
न किसी के आने की उम्मीद
न किसी के जाने का गम
फिर भी कितने खुश थे हम
जब चल रही हो मेरी आखरी सांसे
तो रब से मेरी फरियाद करोगे ,
क्या तुम मुझे याद करोगे
जब मिलेंगे किसी मोड़ पर
तो मुझसे बात करोगे ।
क्या तुम मुझे याद करोगे..
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: मौलिक रचना
बिनुसिंह नेताम
जिला – बिलासपुर ।
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