काशी पर कविता | Kashi par kavita

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काशी पर कविता

काशी पर कविता – अपना प्यारा काशी

बनके रस रग रग में बसा है 
अपना प्यारा काशी
जहा बिराजे अद्वितीय,अजर ,
अमर भोले अविनाशी।
जहा पतित पावन गंगा बसी है,
बड़ी लुभावन घाट अस्सी है,
गंगा जी की आरती की बात बड़ी निराली ।
बनके रस रग रग में बसा है अपना प्यारा काशी ।
ये भक्ति मुक्ति का प्रतीक है,
कण कण में बसे है मेरे भोले,
ऐसा कोई नही यहां जो,
हर बम बम ना बोले,
दुल्हन सी लगे बनारस
जब जब आती है दिवाली ।
बनके रस रग रग में बसा है अपना प्यारा काशी ।
संकटमोचन में बसे स्वयं यहां हनुमान जी,
दुःख हरे पीड़ा कटे करते पुरन काज जी,
सीता के संग राम बिराजे,
गौरी संग त्रिपुरारी ।
सबसे न्यारा सबसे उत्तम अपना प्यारा काशी।
बनके रस रग रग में बसा है अपना प्यारा काशी।

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक:  Nootan Pathak

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