कविता – लाचार | Lachar

Reading Time: 2 minutes


लाचार

क्यों हुँ? मैं लाचार 
ये उठा मन में विचार 
कर सकता हुँ बहुत कुछ पर मज़बूरी है।
मुझ पर सवार 
तैर सकता हुँ पर 
कहाँ है। मेरी पतवार 
क्यों हुँ? मैं लाचार 
ये उठा मन में विचार 
इन बंदिशों को तोड़कर 
उड़ना चाहता हुँ 
आसमान को छूना चाहता हुँ।
है।पैर जंजीरो में मेरे 
उसे छुड़ाकर 
भागना चाहता हुँ।
क्यों हुँ? मैं लाचार 
ये उठा मन में विचार 
बदलते दौर में 
लोगो को बदलते देख 
अपने भरोसे को 
झकझोरना चाहता हुँ।
क्यों हुँ? मैं लाचार 
ये उठा मन में विचार 

————

कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

लेखक:  Vikram Bahadur

इस कविता के बारे में अपने विचार comment करके हमें ज़रूर बताएं और अपने साथियों तक इसे अवश्य पहुंचाए ।

और हिंदी अंश को विजिट करते रहें।  

_________________

अपनी कविता प्रकाशित करवाएं

Mail us on – Hindiansh@gmail.com

Leave a Comment